Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 27
________________ ( 22 ) न करता हो, वह मर कर मनुष्य-गति में जन्म लेता है। मनुष्य होने के लिए सन्तोषी और उदार जीवन का होना आवश्यक है। देव-गति जैन-धर्म में देवताओं के चार भेद बताये हैं-1.भवन-पति-असुर, नाग आदि, 2. व्यन्तर—भूत, प्रेत, राक्षस आदि, 3. ज्योतिष्क-चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र आदि और 4. वैमानिका वैमानिक देव सब देवताओं में श्रेष्ठ माने गये हैं। इन देवों के ऊपर आकाश लोक में सौधर्म, ईशान आदि छब्बीस स्वर्ग हैं। देवगति सुख भोगने की गति है। देवता रात-दिन सुख में मग्न रहते हैं। देवता अपने शरीर को छोटा-बड़ा मनचाहा बना सकते हैं। देवगति में कौन जन्म लेता है ? जो प्राणी साधु-धर्म अथवा श्रावक-धर्म का पालन करता है, दान देता है, तप करता है, दीन-दुःखियों की सेवा करता है, वह मरकर देव-गति में जन्म लेता है। अभ्यास 1. गति किसे कहते हैं ? 2. गति कितनी होती हैं ? 3. नरक में कौन जाता है ? 4. मनुष्य कौन होता है ? 5. देव कौन होता है ? 6. सबसे अच्छी गति कौन-सी है, और क्यों ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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