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तिर्यंच-गति पृथ्वीकाय के जीव, जलकाय के जीव, अग्निकाय के जीव, वायुका के जीव और वनस्पतिकाय के जीव-ये सब एकेन्द्रिय जीव तिर्य कहलाते हैं। कीड़े, मकोड़े, मक्खी आदि तीनों विकलेन्द्रिय, तथा पंचेन्द्रि में जलचर-मछली आदि, स्थलचर-गाय, भैंस, साँप, चूहा, आदि खेचर-तोता, हंस आदि पंक्षी भी तिर्यंच कहलाते हैं। यह तिर्यंच-गति सब बडी है। अनन्त जीव इसी गति में हैं।
तिर्चय-गति में कौन जाते हैं ? जो प्राणी झूठ बोलते हैं, छल-कपट करते हैं, दूसरों को धोखा देते हैं, व्यापार आदि में बेईमानी करते हैं, वे तिर्यंच-गति में जन्म लेते हैं। यह गति भी बरे कर्मों का फल भोगने के लिए
मनुष्य-गति चार गतियों में मनुष्य-गति सर्वश्रेष्ठ है। बड़े भारी पुण्य का उदय होता हैं, तब कहीं जाकर मनुष्य बना जाता है। भगवान् महावीर मनुष्यों को देवानुप्रिय के नाम से सम्बोधन किया करते थे। देवानुप्रिय का अर्थ है-देवताओं के भी प्यारे। अर्थात् देवता भी मनुष्य बनने की कामना करते हैं। और किसी गति से मोक्ष नहीं मिलती है। मनुष्य जीवन में ही साधना के द्वारा मोक्ष प्राप्त होती है।
मनुष्य कौन हो सकते हैं ? जो प्राणी स्वभाव से सरल हो, विनयवान ही, दयालु हो, परोपकारी हो और किसी की उन्नति को देखकर डाह वगैरह
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