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ऐसा जान पड़ेगा कि पढ़ने में सुस्ती करके, हमने भारी भूल की है। जो बच्चे अब नहीं पढ़ते हैं वे आगे बड़े होने पर पछताया करते हैं।
शिक्षा का स्थान, संसार के सब पदार्थों में उत्तम और श्रेष्ठ स्थान है। विद्या-धन का कभी नाश नहीं होता। दूसरों को देने से यह घटती नहीं, वरन् बढ़ती ही जाती है। विद्या वह गुप्त धन है, जिसे न चोर चुरा सकता है और न राजा छीन सकता है। विद्या से हीन मनुष्य की गिनती पशुओं में की जाती है। जिस घर में विद्या का निवास है, उस घर में सदा सुख शान्ति, सदाचार और धन-धान्य का निवास है। जहाँ इसका प्रकाश नहीं है, वहाँ सदा कलह, वैर और विरोध आदि दुर्गुणों का ही डेरा जमा रहता है। भगवान् महावीर ने भी मानव-जीवन में ज्ञान को ही पहला स्थान दिया है। जैन-धर्म मानता है—बिना ज्ञान के शान्ति नहीं।
यह याद रखो कि जो बालक पढ़ा-लिखा नहीं है, वह भले ही रूपवान हो, गहनों से लदा रहता हो, परन्तु अनपढ़ होने के कारण कभी भी आदर नहीं पाता। उसका सभी जगह तिरस्कार और उपहास ही होता है।
विद्या पढ़ने की यही अवस्था है। अगर अभी आलस्य करोगे, तो आगे उसका फल अच्छा नहीं रहेगा। अभी बचपन में तुम पर कोई घर के काम-काज की फिकर नहीं है, तुम्हारा मन भी साफ है, परिश्रम भी अच्छा कर सकते हो। आगे ज्यों-ज्यों आयु बड़ी होती जायेगी, ज्यों-ज्यों चिन्ता
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