Book Title: Jain Bal Shiksha
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 16
________________ 5 जीवों की पाँच जाति जाति का अर्थ-वर्ग है, विभाग है। जो पदार्थ एक जैसे हों, उनको एक जाति का कहते हैं। सब मनुष्य रूप से एक हैं, इसलिए सब मनुष्यों के लिए मानव-जाति शब्द का प्रयोग किया जाता है। मनुष्य चाहे कैसे ही काले, गोरे, हिन्दुस्तानी, यूरोपियन, अमरीकन और हब्शी बगैरह हों, परन्तु सबका आकार, शक्ल-सूरत एक-जैसी ही है, इसीलिए सब मनुष्य कहे जाते हैं। इसी प्रकार पशु-जाति, पक्षी-जाति, वृक्ष-जाति आदि के सम्बन्ध भी समझ लेना चाहिए। ___ अब यहाँ इस पाठ में संसारी जीवों का वर्णन किया जाता है। इन्द्रिय के भेद से सबके-सब संसारी जीव पाँच प्रकार के होते हैं। जैन-धर्म में इन पाँच प्रकार के जीवों के समूह की जाति का नाम दिया है। भगवान् महावीर ने बताया है, कि सबके सब संसारी जीवों की पाँच जातियाँ हैं। कहने का अभिप्राय यह है, कि सबके-सब संसारी जीव पाँच जातियों में हैं, यानी पाँचों भागों में बँटे हुए हैं। वे पाँच जाति इस प्रकार हैं-1.एकेन्द्रिय जाति--एक इन्द्रिय वाले जीव, 2. द्वीन्द्रिय जाति-दो इन्द्रिय वाले जीव, 3. त्रीन्द्रिय जाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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