Book Title: Jain Acharya Charitavali
Author(s): Hastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 11
________________ आचार्य चरितावली द्वितीय पट्टघर प्राचार्य हुए । केवलजान पाकर शिवरमणी के अधिकारी हुए । आपके वाद दश वोलो का इस भारतवर्ष मे विच्छेद हो गया; जो इस प्रकार है . मणपरमोहि पुलाए, आहार खवंग उवसमे कप्पे । सजमतिग केवलसिज्जण- य जम्बुम्मि बुच्छिन्ना ।। अर्थात् (१) परम अवधिज्ञान, (२) मन. पर्यायजान, (३) केवल ज्ञान, (४) परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय और, यथाख्यात चारित्र रूप संयमत्रिक (५) उपशम श्रेणी, (६) क्षपक श्रेणी, (७) जिनकल्प, (८) पुलाकलब्धि, () अोहारक लब्धि और (१०) मोक्षगमन । ___ आप सोलह वर्ष गृहस्थ रहे फिर सयम लेकर वीस वर्ष सामान्य साधु और चवालीस वर्प प्राचार्य पद पर रहकर कुल ८० (अस्सी) वर्ष की आयु भोग कर निर्वाण को प्राप्त हुए । वीर निर्वाण के चौसठवे वर्ष में आपका निर्वाण हुआ। वर्तमान का आगम साहित्य प्रापही की महती कृपा का फल है । ॥४॥ प्राचार्य प्रभवा ॥ लावणी ॥ जम्बू के पट्ट देखो प्रभवा राज, चोराधिप से श्रमणाधिप पद छाजे । जम्बू की संगति का यह फल पाया, चौर पांचसौ के संग व्रत अपनाया। हुमा प्रभावक शासन का अधिकारी ॥ लेकर० ॥५॥ अर्थ –जंवू के वाद तीसरे पट्टधर प्राचार्य प्रभवा हुए । चोरनायक से श्रमणनायक के महत्त्वपूर्ण पद को प्राप्त करना, परम वैरागी जवू की सगति का ही फल है । उन्होने पॉच सौ चोरो के साथ दीक्षाव्रत ग्रहण किया और वीर शासन के वडे प्रभावशाली प्राचार्य हुए ॥५॥

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