Book Title: Jain Acharya Charitavali
Author(s): Hastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ प्राचार्य चरितावली उनके अनुगामी को न्हायें (नमा) माया । राग-ध ही भूला जन निज गुरग को, धर्म-कथा जागत करती जन-मन को । सुनो ध्यान से सत्य कथा हितकारी ॥ लेकर० ॥२॥ अर्थ -महावीर के अनूगामी प्राचार्यो को मिर नमा कर उन युग प्रधान संतो की हम प्रेम से जीवनगाथा गाते है । रागान्ध मानव निज-गुगा को भूल रहा है। धर्म-कथा ही मानव के उस सोये हुए मन को जागत करती है । वैसी स्वपरहितकारी कथा ही कल्याणार्थी को ध्यान से श्रवण करनी चाहिये ।।२।। || राधे० ॥ प्रथम पट्टधर हुए सुधर्मा, जिनका यश जग छाया है। बोस वर्ष शासन दीपा कर, शुद्ध बुद्ध कहलाया है ॥२॥ छात्र पांच सौ साथ प्रवज्या, लेकर धर्म दिपाया है। शास्त्रवाचना के संचालक, जग उपकार सवाया है ।। ३ ॥ श्रमणसंघ के थे युग नेता, भिन्न कल्प भी चलते थे। पर सन मे थी एक मूत्रता, संयम जीवन जीते थे ॥४॥ तरुण विरागी एक मिला, लक्ष्मी का परम दुलारा था ऋषभदत्त का कुलउजियारा, आठ रमणीका प्यारा था ॥५॥ अर्थ -आर्य सुधर्मा महावीर के प्रथम पट्टधर हुए जिनका विमल यण समस्त संसार में फैला हुआ है । तीस वर्ष तक सामान्य मुनि-पद पर रह कर आप आचार्य पद पर आसीन हुए, और बीस वर्ष तक शासन की प्रभावना कर सिद्ध मुक्त हो गये । नापने पाच सौ छात्रो के साथ प्रव्रज्या ग्रहण कर चौदह पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया। आज की गास्त्र-वाचना के आप ही सचालक है। अाप श्रमणसघ के प्रथम युग प्रधान आचार्य थे, आपके समय मे जिन कल्प और स्थविरकल्प जैसे भिन्न-भिन्न कल्प भी चलते थे, फिर भी कही किसी मे विरोध का व्यवहार दृष्टि-गोचर नहीं होता। कुछ स्वकल्याण मे रत रहते थे तो दूसरे स्वकल्याण के साथ समाजहित मे भी यथायोग्य योगदान दे रहे थे । सबमें एकसूत्रता थी। संयम जीवन से जीना सबको इप्ट था। एक समय उनको राजगह मे एक तरुण लक्ष्मीपुत्र

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 193