________________
आचार्य चरितावली
विरक्त रूप मे मिला, जो श्रेष्ठीवर ऋषभदत्त का दुलारा और पाठ कुल रमरिणयो का प्यारा था ।।५।।
|| लावरण । मात पिता रमणी संग दीक्षा लीनी, जिन शासन की महती सेवा कीनी । वीर प्रभु के शासन के अधिकारी, चरम केवली हुए महावत धारी ।
धन्य-धन्य योगीश्वर परउपकारी ॥ लेकर० ॥३॥ अर्थ:-जंवू ने माता-पिता के प्राग्रह से आठ उच्च कुलोन कन्यानो से शादी की । श्वसुर पक्ष की तरफ से ६६ करोड़ स्वर्ण मुद्रायो का दहेज मिला। फिर भी माया में मोहित नही हुए। उन्होने प्रथम मिलन की रात्रि मे भोग के बदले पाठों रमणियो को योग की शिक्षा दी। सोनैया चुराने को आये हुए प्रभवसिह ग्रादि पाच सौ चोरों को वोध दिया और प्रात काल पाठो वो और पाँच सौ चोरो के साथ माता-पिता के सामने संयम अगीकार करने की अनुमति लेने को उपस्थित हुए। सेठ ऋषभदत्त ने पुत्र का अकल्पित प्रभाव देखा तो वे भी प्रभावित हुए और जंवू के साथ दीक्षित होने को तैयार हो गये। इस प्रकार उस तरुण वैरागी ने माता पिता और रमणियो को संग लेकर पाँचसौ सत्ताईस व्यक्तियो के साथ दीक्षा ग्रहण की । उसने अपने उत्कृष्ट त्याग वैराग्यपूर्ण जीवन से शासन की बड़ी सेवा की । सुधर्मा स्वामी के वाद वे शासन के उत्तराधिकारी हुए और वीर शासन के अतिम केवली कहलाये। उन परमयोगी और महान् उपकारी आचार्य जम्बू को कोटि-कोटि प्रणाम है ।।३।।
॥ लावणी ॥ द्वितीय पट्ट पर गणपति का पद पाया, केवल पाकर शिवरमरगी को ध्याया । -केवल ज्ञानादिक दश बात विलाई, वर्ष चौसठे लिया मुक्तिपद पाई ।
हम सब पर उपकार किया अतिभारी ॥ लेकर० ॥४॥ अर्थ:-सुधर्मा के पश्चात् जवू ने प्राचार्य पद प्राप्त किया और ये