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उसके फल में प्राप्त शारीरिक सुन्दरता और शरीर के बल पर गर्व करते हैं, वह पुण्य और शरीर की सुन्दरता | भी स्वयं के लिए किसप्रकार दुःखद बन जाती है। वसुदेव की सुन्दरता पर नगर की नारियाँ मिठाई पर मक्खियों की तरह मंडराने लगी थीं, जिससे सम्पूर्ण नगरवासियों ने मिलकर राजा से जो अपनी तकलीफ बतलाई, उसी के कारण वसुदेव को राजमहल के बन्धन में डालना पड़ा, जबकि वसुदेव ने अपनी ओर से किसी भी नारी के साथ कोई अनुचित व्यवहार नहीं किया था। यदि नारियाँ उनके रूप पर आकर्षित हुईं तो इसमें उनका क्या दोष है ? पुण्योदय से प्राप्त रूप ही तो उनकी बदनामी का और प्रतिबंध में रहने का कारण बना । जब बन्धन में रखने का यह रहस्य वसुदेव को ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपना अपमान अनुभव किया और छुपकर भाग गये, फिर आत्मघात करने का जो नाटकीय प्रदर्शन किया, उससे उन्हें अज्ञातवास में रहना पड़ा।
यह सब पुण्य-पाप का ही तो खेल है, अत: ऐसी आकुलता में नहीं पड़ना हो तो हमें अपने आत्मस्वभाव को जानकर पहचानकर मुक्ति के मार्ग में लगना चाहिए।
थोड़ी-सी बाह्य अनुकूलता पाकर, यदि चूक गये यह स्वर्ण अवसर तो दुर्गति में हमारा ही आत्मा हम से पूछेगाक्या पाया है तूने ! पर व पर्यायों में उलझकर ? अत: क्यों न सीख लें/समझ लें इन सुखद सिद्धान्तों को और सफल कर लें अनुकूल संयोगों को इसी में है हम सबका भला यही है सुखी जीवन की कला
- सुखी जीवन : आत्मकथ्य का अन्तिम तथ्य