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पराक्रम से वसुदेव ने हाथी को काबू में कर लिया ।
वहाँ वसुदेव ने यह सुना कि जो सोमश्री को वेद विद्या में जीतेगा, वह ही उससे विवाह करेगा; एतदर्थ वसुदेव ब्रह्मदत्त गुरु के पास गये । ब्रह्मदत्त ने पहले उन्हें जैनधर्म की अध्यात्म विद्या पढ़ाई, बाद में वेद विद्या; | क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार अध्यात्म विद्या ही सब विद्याओं की जननी है । वसुदेव ने दोनों विद्याओं में निपुणता प्राप्त कर सोमश्री से विवाह किया ।
एक बार वसुदेव उद्यान में जैन मन्दिर के पास सो रहे थे कि एक मांसभक्षी नर ने वहाँ आकर उन्हें जगाया । वह उन्हें मारकर खाना चाहता था; किन्तु वसुदेव ने उसे ही मुष्टियुद्ध में जीत कर प्राणरहित कर दिया ।
यद्यपि मार-पीट करना, किसी को भी मार डालना कोई अच्छी बात नहीं है; किन्तु गृहस्थ विरोधी हिंसा का त्यागी नहीं होने पर भी वह स्वयं पहले आक्रमण नहीं करता, आक्रान्त तो महापापी और अपराधी भी है ।
इसतरह अनेक उतार-चढ़ावों के बीच संघर्ष करते और सफल होते हुए, अनेक कन्याओं को विवाहते हुए कुमार वसुदेव अरिष्टपुर आये और वहाँ के राजा रुधिर की पुत्री रोहिणी का स्वयंवर में वरण किया । इससे अनेक राजा क्रोधित हुए और उन्होंने वसुदेव से युद्ध करने की ठान ली। जरासंध ने राजाओं को बारीबारी से वसुदेव से लड़वाया; अन्त में समुद्रविजय भी आये। अब तक समुद्रविजय को यह ज्ञात नहीं था कि मेरा अनुज वसुदेव जीवित ही है और यह वसुदेव मेरा अनुज ही है, जिससे मैं युद्ध करने आया हूँ । इसकारण दोनों भाइयों में युद्ध हुआ । वसुदेव ने अपना कौशल दिखलाने के बाद जब एक बाण पत्रसहित अपने अग्रज समुद्रविजय पर छोड़ा, तब समुद्रविजय ने जाना कि लघु भ्राता वसुदेव अभी जीवित है। यह जानकर वे बहुत हर्षित हुए।
प्रस्तुत वसुदेव के चरित्र से सबसे बड़ी शिक्षा यह मिलती है कि हम जिस पुण्य की चाह करते हैं और
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