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इस काल के मनुष्य अनेक बार भोजन करते हैं। (न एक इति अनेक अर्थात् दो बार को भी अनेक बार कह सकते हैं) इस काल के प्रारम्भ में मनुष्यों की ऊँचाई ७ हाथ और आयु १२० वर्ष की होती है। अंत
में घटते - घटते ऊँचाई ३ हाथ या ३.५ हाथ एवं आयु २० वर्ष की रह जाती है। ४. यह काल २१००० वर्ष का होता है। इसमें पाँच वर्ण वाले किन्तु हीन कांति से युक्त
शरीर होते हैं। ५०० वर्ष बाद उपकल्की राजा व १००० वर्ष बाद एक कल्की राजा उत्पन्न होता है। इक्कीसवाँ अंतिम कल्की राजा जलमंथन मुनिराज से टैक्स के रूप में प्रथम ग्रास मांगेगा। मुनिराज तुरंत उसे देकर और अंतराय करके वापस आ जायेंगे। वे अवधिज्ञान से जान लेंगे कि अब पंचम काल का अंत है। तीन दिन की आयु शेष है | चारों (वीरांगज मुनि, सर्वश्री आर्यिका, अग्निदत्त श्रावक और पंगुश्री श्राविका) सल्लेखना ग्रहण कर लेंगे । कार्तिक कृष्णा अमावश्या को शरीर त्याग कर सौधर्म स्वर्ग में देव होते होंगे। मध्याह्न में असुरकुमार देव धर्म द्रोही कल्की राजा को समाप्त करेंगे और सूर्यास्त के समय अग्नि नष्ट हो जावेगी। इस प्रकार पंचम काल का अंत होगा।
नोट : प्रत्येक कल्की के समय में एक मुनि नियम से अवधिज्ञान को प्राप्त करता है। प्रश्न - हुंडावसर्पिणी काल की क्या विशेषताएँ हैं ? उत्तर - असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल बीत जाने पर एक हंडावसर्पिणी काल आता है।
जिसमें कुछ अनहोनी घटनायें घटती हैं, उसके चिह्न इस प्रकार हैं जैसे - १. तृतीय काल सुषमा दुःषमा के कुछ समय शेष रहने पर ही वर्षा होने लगती है जिससे
विकलत्रय जीवों की उत्पत्ति होने लगती है। इसी काल में कल्पवृक्षों का अंत एवं कर्म
भूमि का प्रारंभ हो जाता है। २. उस काल में प्रथम तीर्थंकर और प्रथम चक्रवर्ती भी उत्पन्न हो जाते हैं।
कुछ जीवों का मोक्ष गमन भी होता है। चक्रवर्ती का मान भंग होता है। चक्रवर्ती से की गई द्विजों के वंश की उत्पत्ति होती है। दुःषमा सुषमा काल में ५८ ही शलाका पुरुष होते हैं। नौवें तीर्थंकर से सोलहवें तीर्थंकर तक धर्म की व्युच्छित्ति होती है। अर्थात् उस समय मुनि, आर्यिका, श्रावक ,श्राविका कोई भी नहीं होते।
ग्यारह रुद्र और नौ नारद होते हैं। . सातवें, तेईसवें और अंतिम तीर्थंकर पर उपसर्ग होता है। ०. तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम काल में उत्तम धर्म को नष्ट करने वाले कुदेव और कुलिंगी
होते हैं। ११. चांडाल, शबर, किरात आदि जातियां उत्पन्न होती हैं। १२. अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, वज्र अग्नि गिरना आदि प्रकृति की विकृति रूप घटनाएं
होती हैं।