Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 172
________________ प्रश्न ०४९- व्यय किसे कहते हैं? उत्तर - द्रव्य में पूर्व पर्याय के त्याग (विनाश) को व्यय कहते हैं। प्रश्न ०५०- धौव्य किसे कहते हैं? उत्तर - प्रत्यभिज्ञान की कारणभूत द्रव्य की किसी अवस्था की नित्यता को ध्रौव्य कहते हैं। १.५ द्रव्यों के विशेषगुण प्रश्न ०५१- प्रत्येक द्रव्य के विशेषगुण कौन-कौन से हैं? उत्तर जीवद्रव्य में चेतना, सम्यक्त्व, चारित्र, सुख, क्रियावती शक्ति इत्यादि । पुद्गलद्रव्य में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण क्रियावतीशक्ति आदि। धर्मद्रव्य में गतिहेतुत्व आदि। अधर्मद्रव्य में स्थितिहेतुत्व आदि। आकाशद्रव्य में अवगाहनहेतुत्व आदि और काल द्रव्य में परिणमन हेतुत्व आदि विशेष गुण हैं। (जीव और पुद्गल में क्रियावतीशक्ति नाम का गुण नित्य है, उसके कारण अपनी- अपनी योग्यतानुसार कभी क्षेत्रान्तररूप पर्याय होती है, कभी स्थिर रहनेरूप पर्याय होती है। कोई द्रव्य (जीव या पुद्गल) एक-दूसरे को गमन या स्थिरता नहीं करा सकते, दोनों द्रव्य अपनी-अपनी क्रियावतीशक्ति की उस समय की योग्यता के अनुसार स्वतः गमन करते हैं या स्थिर होते हैं।) (- लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न १६ की पाद -टिप्पणी) १.६ लोक और अलोक प्रश्न ०५२- आकाश के कितने भेद हैं? उत्तर - आकाश एक अखण्ड द्रव्य है। प्रश्न ०५३- आकाश कहाँ पर है? उत्तर - आकाश सर्वव्यापी है। प्रश्न ०५४- लोकाकाश किसे कहते हैं? उत्तर - आकाश में जहाँ तक जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल - ये पाँच द्रव्य रहते हैं, उसे लोकाकाश कहते हैं। प्रश्न ०५५- अलोकाकाश किसे कहते हैं ? - लोक से बाहर के आकाश को अलोकाकाश कहते हैं। प्रश्न ०५६- लोक की मोटाई, ऊँचाई और चौड़ाई कितनी है? उत्तर लोक की मोटाई, उत्तर और दक्षिण दिशा में सब जगह सात राजू है । चौड़ाई पूर्व और पश्चिम दिशा में सबसे नीचे सात राजू है। ऊपर क्रम से घटकर सात राजू की ऊँचाई पर चौड़ाई एक राजू है। फिर क्रम से बढ़कर साढ़े दस राजू की ऊँचाई पर पाँच राजू चौड़ाई है। फिर क्रम से घटकर चौदह राजू की ऊँचाई पर पुनः एक राजू चौड़ाई है। लोक की ऊँचाई ऊर्ध्व और अधो दिशा में चौदह राजू है। (लोक की रचना कमर पर दोनों तरफ हाथ रखकर खड़े हुए मनुष्य के समान मानी गयी है अथवा नीचे एक उल्टी अर्द्धमृदंग उसके ऊपर एक पूर्ण मृदंग रखने पर जैसी आकृति बनती है, उसके समान है। लोक का प्रमाण ३४३ घन राजू है। यह सम्पूर्ण लोक तीन प्रकार के वातवलय से वेष्टित है - १. घनोदधिवातवलय, २. घनवातवलय और ३. तनुवातवलय । ये तीनों वातवलय सामान्यतया २०-२० हजार योजन प्रमाण मोटाई वाले हैं। यह उत्तर

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