Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 179
________________ प्रश्न १०६- सम्यक्त्वगुण किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस गुण के प्रगट होने पर अपने शुद्ध आत्मा का प्रतिभास होता है उसे सम्यक्त्वगुण कहते हैं। (सम्यक्त्वगुण का पर्यायवाची श्रद्धागुण है। सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन उसकी क्रमशः स्वभाव विभाव पर्यायें हैं। सम्यग्दर्शन के अनेक लक्षण हैं, उनमें चार मुख्य हैं - (१) आत्मा का श्रद्धान, (२) स्व-पर का श्रद्धान, (३) जीवादि तत्त्वों का श्रद्धान तथा (४) सच्चे देव - शास्त्र - गुरु का श्रद्धान । दर्शनमोह की तीन और चारित्रमोह की अनन्तानुबन्धी कोध-मान-माया-लोभ मिलाकर कुल सात प्रकृतियों के उपशम - क्षय - क्षयोपशम से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। सम्यग्दर्शन के अलग-अलग अपेक्षाओं से अनेक प्रकार के भेद बताये गये हैं। उत्पत्ति की अपेक्षा दो भेद हैं - निसर्गज और अधिगमज। नयों की अपेक्षा दो भेद हैं - निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन । राग के सद्भाव और अभाव की अपेक्षा सराग सम्यग्दर्शन और वीतराग सम्यग्दर्शन कर्म की अपेक्षा तीन भेद हैं उपशम सम्यग्दर्शन, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन और क्षायिक सम्यग्दर्शन आदि।) प्रश्न १०७- चारित्र किसे कहते हैं? उत्तर - बाह्य और आभ्यन्तर क्रिया के निरोध से होनेवाली आत्मा की विशेष शुद्धि को चारित्र कहते हैं। (ऐसे परिणामों को स्वरूप स्थिरता, निश्चलता, वीतरागता, साम्य, धर्म और चारित्र कहते हैं । जब आत्मा के चारित्रगुण की शुद्धपर्याय उत्पन्न होती है तब बाह्य और आभ्यन्तरक्रिया का यथासम्भव निरोध हो जाता है।) (- लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न ९४) प्रश्न १०८- बाह्य क्रिया किसे कहते हैं? उत्तर हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना, कुशील सेवन करना और परिग्रह संचय करना आदि को बाह्य क्रिया कहते है। (यहाँ मुख्यरूप से बाह्य अशुभक्रियाओं का उल्लेख किया है, क्योंकि शुभ-क्रियाओं को व्यवहारनय से देशचारित्र और सकलचारित्र के रूप में माना जाता है; निश्चयचारित्र में तो शुभ और अशुभ दोनों क्रियाओं का निषेध हो जाता है।) प्रश्न १०९- आभ्यन्तर क्रिया किसे कहते हैं ? उत्तर - योग और कषाय को आभ्यन्तर क्रिया कहते हैं। प्रश्न ११०- योग किसे कहते हैं? उत्तर - मन - वचन-काय के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों के चंचल होने को योग कहते हैं। प्रश्न १११- कषाय किसे कहते हैं? उत्तर - क्रोध - मान-माया - लोभरूप आत्मा के विभाव परिणामों को कषाय कहते हैं। प्रश्न ११२- गुण स्थान अपेक्षा से चारित्र के कितने भेद है? उत्तर - गुण स्थान अपेक्षा से चारित्र के चार भेद हैं - स्वरूपाचरणचारित्र, देशचारित्र, सकलचारित्र और यथाख्यात चारित्र। प्रश्न ११३- स्वरूपाचरणचारित्र किसे कहते हैं? उत्तर शुद्धात्मानुभवन से अविनाभावी विशेष चारित्र को स्वरूपाचरणचारित्र कहते हैं। (सम्यक्त्व से अविनाभावी होने के कारण इसे व्यवहार से सम्यक्त्वाचरणचारित्र भी कहते हैं। यह चौथे गुणस्थान से ही अनन्तानुबन्धी कषाय के अभाव में प्रगट होता है। इसके सद्भाव में अष्ट अगों का पालन; आठ शंकादि दोष, आठ मद, छह अनायतन और तीन मूढ़ताओं का त्याग होता है। जीव के भाव प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य से युक्त होते हैं।) (- अष्टपाहुड़ चारित्रपाहुड के आधार पर )

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