Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ प्रश्न २८१ - गुण हानि किसे कहते हैं ? उत्तर प्रश्न २८२ उत्तर - - प्रश्न २८३ उत्तर - - - - गुणाकाररूप हीन हीन द्रव्य (परमाणु) जिसमें पाये जाते हैं, उसे गुण-हानि कहते हैं। जैसे किसी जीव ने एक समय में ६३०० ( त्रेसठ सौ ) परमाणुओं के समूह रूप समय प्रबद्ध का बंध किया और उसमें ४८ समय की स्थिति पड़ी, उसमें गुण-हानियों के समूहरूप नाना गुण - हानि की संख्या छह है- उसमें से प्रथम गुण - हानि के परमाणु ३२००, दूसरी के १६००, तीसरी के ८००, चौथी के ४०० पाँचवीं के २००, छठवीं के १०० हैं । यहाँ उत्तरोत्तर गुण-हानियों में गुणाकाररूप हीन-हीन परमाणु ( द्रव्य) पाये जाते हैं इसलिये इसको गुण-हानि कहते हैं। , गुण हानि आयाम किसे कहते हैं ? प्रश्न २८४ - अन्योन्याभ्यस्त राशि किसे कहते हैं ? उत्तर - - - एक गुण हानि के समयों को गुण हानि आयाम कहते हैं। जैसे - ऊपर दिए हुए दृष्टांत में ४८ समय की स्थिति में गुण हानि की संख्या ६ है ४८ में ६ भाग देने से प्रत्येक गुण हानि का परिमाण ८ आया है। यही गुण हानि आयाम कहलाता है। नाना गुण हानि किसे कहते हैं ? प्रश्न २८५- अन्तिम गुण हानि के द्रव्य का परिमाण किस प्रकार से निकलता है ? उत्तर हानियों के समूह को नाना गुण हानि कहते हैं। जैसे - ऊपर के दृष्टांत में आठ-आठ समय की छह गुण - हानि है। इस छह की संख्या को नाना गुण - हानि का परिमाण जानना चाहिए। समय प्रबद्ध में एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशि का भाग देने पर अन्तिम गुण हानि के द्रव्य का परिमाण निकलता है जैसे ६३०० में एक कम ६४ अर्थात् ६४ १= ६३ का भाग देने से १०० की संख्या मिलती है, यही अन्तिम गुण हानि का द्रव्य है । निकलता है ? उत्तर प्रश्न २८६ अन्य गुण हानियों के द्रव्य का परिमाण किस प्रकार अन्तिम गुण हानि के द्रव्य को प्रथम गुण हानि पर्यन्त दूना दूना करने से अन्य गुण हानियों के द्रव्य का परिमाण निकलता है। जैसे- २००, ४००, ८००, १६००, ३२०० प्रश्न २८७ - प्रत्येक गुण हानि में प्रथमादि समयों के द्रव्य का परिमाण किस प्रकार होता है ? उत्तर निषेकहार के चय से गुणा करने पर प्रत्येक गुण हानि के प्रथम समय का द्रव्य निकलता है और प्रथम समय के द्रव्य में से एक-एक चय घटाने से उत्तरोत्तर समयों के द्रव्य का परिमाण निकलता है। जैसे- निषेकहार १६ को चय ३२ से गुणा करने पर प्रथम गुणहानि के प्रथम समय का द्रव्य ५१२ होता है और ५१२ में से एक-एक चय अर्थात् बत्तीस घटाने १८४ नाना गुण हानि की संख्या के बराबर ०२ की संख्या रखकर उनका परस्पर गुणाकार करने से जो गुणन फल प्राप्त होता है उसे अन्योन्याभ्यस्त राशि कहते हैं। जैसे - ऊपर के दृष्टांत में नाना गुण हानि की संख्या ६ है अतः ६ बार २ की संख्या रखकर उनका परस्पर गुणा करने से अर्थात् २ २ २ २ x २ x २ = ६४ की संख्या प्राप्त होती है उसे ही अन्योन्याभ्यस्त राशि का परिमाण जानना चाहिए अथवा इस प्रकार भी जानना चाहिये - अन्योन्याभ्यस्त राशि = २ नानागुण-हानि | जैसे - ६४ = २६ - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211