Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 202
________________ उत्तर - ५ १८७ प्रश्न ३०१- द्रव्यबन्ध किसे कहते हैं? उत्तर - कार्मण स्कन्धरूप पुद्गलद्रव्य का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध होने को द्रव्यबन्ध कहते हैं। प्रश्न ३०२- भावबन्ध किसे कहते हैं? उत्तर - आत्मा के योग - कषायरूप भावों को भावबन्ध कहते हैं। प्रश्न ३०३ - द्रव्यबन्ध का निमित्त कारण क्या है? उत्तर - आत्मा के योग - कषायरूप भाव द्रव्यबन्ध के निमित्त कारण हैं। प्रश्न ३०४ - द्रव्यबन्ध का उपादानकारण क्या है? उत्तर - बन्ध होने के पूर्वक्षण में बन्ध होने के सन्मुख कार्मण स्कन्ध को द्रव्यबन्ध का उपादान कारण कहते हैं। प्रश्न ३०५- भावबन्ध का निमित्त कारण क्या है ? - उदय तथा उदीरणा अवस्था को प्राप्त पूर्वबद्धकर्म भावबन्ध का निमित्त कारण है। प्रश्न ३०६- भावबन्ध का उपादान कारण क्या है? उत्तर भावबन्ध के विवक्षित समय से अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती योग - कषायरूप आत्मा की पर्याय विशेष को भावबन्ध का उपादान कारण कहते हैं। प्रश्न ३०७- भावासव किसे कहते हैं ? उत्तर द्रव्यबन्ध के निमित्त कारण अथवा भावबन्ध के उपादान कारण को भावानव कहते हैं। (जीव की शुभाशुभभावमय विकारी अवस्था को भावासव कहते हैं।) प्रश्न ३०८- द्रव्यासव किसे कहते हैं? उत्तर - द्रव्यबन्ध के उपादानकारण अथवा भावबन्ध के निमित्तकारण को द्रव्यास्रव कहते हैं। (जीव की शुभाशुभभावमय विकारी अवस्था के समय कर्मयोग्य नवीन रजकणों का स्वयं - स्वतः आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाहरूप आना द्रव्यास्रव है।) (-लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, प्रश्न १२५) प्रश्न ३०९- प्रकृतिबन्ध और अनुभाग बन्ध में क्या भेद है? उत्तर प्रत्येक प्रकृति के भिन्न-भिन्न उपादान शक्तियुक्त अनेक भेदरूप कार्मण-स्कन्ध का आत्मा से सम्बन्ध होना प्रकृतिबन्ध कहलाता है और उन ही स्कन्धों में तारतम्यरूप (न्यूनाधिकरूप) फलदान शक्ति को अनुभागबन्ध कहते हैं। प्रश्न ३१०- समस्त प्रकृतियों के बन्ध का कारण सामान्यतया योग है या उसमें कुछ विशेषता कहते हैं। व है।) मान्य नवीन रजकणों का स्वयं उत्तर जिस प्रकार भिन्न-भिन्न उपादान शक्तियुक्त नाना प्रकार के भोजनों को मनुष्य, हस्त द्वारा विशेष इच्छापूर्वक ग्रहण करता है और विशेष इच्छा के अभाव में उदर - पूरण करने के लिये भोजन-सामान्य का ग्रहण करता है, उस ही प्रकार यह जीव विशेष कषाय के अभाव में योगमात्र से केवल साता वेदनीयरूप कर्म को ग्रहण करता है, परन्तु वह योग यदि किसी कषाय-विशेष से अनुरंजित हो तो अन्य-अन्य प्रकृतियों का भी बंध करता है। प्रश्न ३११- प्रकृतिबन्ध के कारण की अपेक्षा से आसव के कितने भेद है? उत्तर - प्रकृतिबन्ध के कारण पाँच हैं - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग।

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