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२.६ आसव प्रश्न २९२- आस्रव किसे कहते हैं? उत्तर - बन्ध के कारण को आस्रव कहते हैं। प्रश्न २९३- आस्रव के कितने भेद हैं ? उत्तर - आस्रव के चार भेद हैं - १ - द्रव्य बन्ध का निमित्त कारण, २ - द्रव्यबन्ध का उपादान कारण, ३ - भावबन्ध का निमित्त कारण और ४ - भावबन्ध का उपादान कारण।
(प्रश्न क्र.३११ भी देखें) प्रश्न २९४ - कारण किसे कहते हैं? उत्तर - कार्य की उत्पादक सामग्री को कारण कहते हैं। प्रश्न २९५- कारण के कितने भेद हैं? उत्तर - कारण के दो भेद हैं - समर्थकारण और असमर्थकारण। प्रश्न २९६- समर्थकारण किसे कहते हैं? उत्तर - प्रतिबन्ध के अभावसहित सहकारी समस्त सामग्रियों के सद्भाव को समर्थकारण कहते
हैं। समर्थकारण के होने पर अनन्तर समय में कार्य की उत्पत्ति नियम से होती है। प्रश्न २९७- असमर्थकारण किसे कहते हैं ? उत्तर
भिन्न-भिन्न प्रत्येक सामग्री को असमर्थकारण कहते हैं। असमर्थकारण कार्योत्पत्ति का
नियामक नहीं है। प्रश्न २९८- सहकारी सामग्री के कितने भेद हैं? उत्तर सहकारी सामग्री के दो भेद हैं - निमित्तकारण और उपादानकारण। (उपादान निजशक्ति है, जिय को मूल स्वभाव । है निमित्त परयोग तैं, बन्यो अनादि बनाव ॥)
(-उपादान-निमित्त संवाद, भैया भगवतीदास, छन्द ३) प्रश्न २९९- निमित्तकारण किसे कहते हैं? उत्तर - जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप नहीं परिणमता है किन्तु कार्य की उत्पत्ति में सहायक होता है,
उसे निमित्तकारण कहते हैं। जैसे- घट की उत्पत्ति में कुम्भकार, दण्ड, चक्र आदि। (जो पदार्थ स्वयं तो कार्यरूप में नहीं परिणमता, परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप जिस पर आता है उसे निमित्त कारण कहते हैं। जैसे - घट की उत्पत्ति में कुम्भकार, दण्ड, चक्र आदि।)
(-लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, प्रश्न १४१) प्रश्न ३००- उपादान कारण किसे कहते हैं? उत्तर जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमता है उसे उपादानकारण कहते हैं। जैसे - घट की
उत्पत्ति में मिट्टी। अनादिकाल से द्रव्य में जो पर्यायों का प्रवाह चला आ रहा है, उसमें अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याय उपादानकारण है और अनन्तर उत्तरक्षणवर्ती पर्याय कार्य है। (पूर्व परिणामसहित द्रव्य कारणरूप है और उत्तरपरिणामसहित द्रव्य कार्यरूप है - ऐसा नियम है।)
(-कार्तिकेयानुप्रेक्षा, २२२)