Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 194
________________ प्रश्न २२८ - पुण्य कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर जिस कर्म के उदय से जीव को इष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है उसे पुण्य कर्म कहते हैं । प्रश्न २२९ - पाप कर्म किसे कहते हैं ? - उत्तर जिस कर्म के उदय से जीव को अनिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है उसे पाप कर्म कहते हैं । प्रश्न २३० घाति कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर जो कर्म, जीव के ज्ञान आदि अनुजीवी गुणों को घातते हैं उन्हें घाति कर्म कहते हैं । प्रश्न २३१ - अघाति कर्म किसे कहते हैं ? - - उत्तर जो कर्म, जीव के ज्ञान आदि अनुजीवी गुणों को नहीं घातते हैं उन्हें अघाति कर्म कहते हैं । प्रश्न २३२- सर्वघाति कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - - प्रश्न २३३ - देशघाति कर्म किसे कहते हैं ? प्रश्न २४० उत्तर प्रश्न २४१ उत्तर उत्तर जो कर्म, जीव के अनुजीवी गुणों को एकदेश घातते हैं उन्हें देशघाति कर्म कहते हैं । प्रश्न २३४- जीव विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? जिन कर्मों का फल जीव में होता है उन्हें जीव विपाकी कर्म कहते हैं। - उत्तर प्रश्न २३५ - पुद्गल विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - - जिन कर्मों का फल पौद्गलिक शरीर आदि में होता है उन्हें पुद्गल विपाकी कर्म कहते हैं। भव विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? प्रश्न २३६ उत्तर जिन कर्मों के फल से जीव नरक आदि भवों में रुकता है उन्हें भव विपाकी कर्म कहते हैं। प्रश्न २३७ क्षेत्र विपाकी कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर जिन कर्मों के फल से विग्रहगति में जीव का आकार पूर्व भव के समान बना रहता है उन्हें क्षेत्र विपाकी कर्म कहते हैं । विग्रहगति किसे कहते हैं ? - - प्रश्न २३८उत्तर - जो कर्म, जीव के अनुजीवी गुणों को पूर्णतया घातते हैं उन्हें सर्वघाति कर्म कहते हैं। कर्म या प्रकृति एकार्थवाची हैं जैसे सर्वघाति कर्म या सर्वघातिप्रकृति | १७९ प्रश्न २३९ - घाति कर्म की प्राकृतियाँ कितनी और कौन कौन सी हैं ? उत्तर - - - एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर ग्रहण करने के लिए जीव का जो गमन होता है उसे विग्रहगति कहते हैं। · घाति कर्म की सैंतालीस प्रकृतियाँ हैं ज्ञानावरण- ५, दर्शनावरण-९, मोहनीय- २८ और अन्तराय - ५ = कुल ४७ घाति कर्म । अघाति कर्म की प्रकृतियाँ कितनी और कौन कौन सी हैं ? - - - - अघाति कर्म एक सौ एक प्रकृतियाँ हैं वेदनीय २, आयु-४, नाम ९३ और गोत्र - २ । सर्वघाति प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ? सर्वघाति कर्म प्रकृतियाँ इक्कीस हैं - ज्ञानावरण- १, (केवलज्ञानावरण), दर्शनावरण६ (केवलदर्शनावरण १ और निद्रा आदि ५), मोहनीय - १४ ( अनन्तानुबन्धी-४, अप्रत्याख्यानावरण-४ प्रत्याख्यानावरण-४ मिथ्यात्व १ और सम्यक् मिथ्यात्व - १ ) ।

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