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प्रश्न २४२- देशघाति प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ? उत्तर - देशघातिकर्म या प्रकृतियाँ छब्बीस हैं - ज्ञानावरण-४ (मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण,
अवधिज्ञानावरण और मनःपर्यय ज्ञानावरण), दर्शनावरण-३ (चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण ), मोहनीय- १४ (संज्वलन-४, नोकषाय
९,सम्यक्त्व प्रकृति-१), अन्तराय-५। प्रश्न २४३ - क्षेत्र विपाकी प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ? उत्तर - क्षेत्र विपाकी कर्म या प्रकृतियाँ चार हैं - नरक गत्यानुपूर्वी, तिर्यक् गत्यानुपूर्वी, मनुष्य
गत्यानुपूर्वी और देव गत्यानुपूर्वी । प्रश्न २४४ - भव विपाकी प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं? उत्तर - भव विपाकी कर्म या प्रकृतियाँ चार हैं - नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु । प्रश्न २४५- जीव विपाकी प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं? उत्तर जीव विपाकी कर्म या प्रकृतियाँ अठहत्तर हैं - सभी घातिकर्म-४७, गोत्रकर्म-२,
वेदनीयकर्म-२ और नामकर्म-२७ (तीर्थंकर प्रकृति-१, उच्छवास-१, बादर-१, सूक्ष्म-१, पर्याप्ति-१, अपर्याप्ति-१, सुस्वर-१, दुःस्वर-१, आदेय-१, अनादेय -१, यशःकीर्ति-१, अयशःकीर्ति -१, त्रस-१, स्थावर-१, सुभग-१, दुर्भग-१,
विहायोगति-२,गति-४,जाति-५)। प्रश्न २४६- पुद्गल विपाकी प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ? उत्तर
पदगल विपाकी कर्म या प्रकृतियाँ बासठ हैं - कुल १४८ प्रकतियों में से क्षेत्र विपाकी-४, भव विपाकी-४,जीव विपाकी-७८ - इस प्रकार सब मिलाकर ८६ प्रकृतियाँ घटाने पर, शेष ६२ प्रकृतियाँ पुद्गल विपाकी हैं। पुद्गल विपाकी प्रकृतियाँ सिर्फ नामकर्म में ही हैं। नामकर्म की कुल ९३ प्रकृतियों में जीव विपाकी -२७ और क्षेत्र विपाकी-४ (कुल-३१) घटाने पर शेष ६२ प्रकृतियाँ पुद्गल विपाकी हैं, जो इस प्रकार हैं - शरीर-५, बन्धन-५, संघात-५, संस्थान-६, संहनन - ६, आंगोपांग-३, वर्ण-५, गन्ध-२, रस-५, स्पर्श-८, अगुरुलघु-१, उपघात-१, परघात-१, आतप-१, उद्योत-१, निर्माण-१, प्रत्येक-१, साधारण-१,
स्थिर-१, अस्थिर-१,शुभ-१ और अशुभ-१।। प्रश्न २४७- पाप प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी हैं ? उत्तर पाप प्रकृतियाँ सौ हैं - घाति कर्म की सभी-४७, असातावेदनीय-१,नीच गोत्र-१,
नरकायु-१ और नामकर्म-५० (नरकगति-१, नरकगत्यानुपूर्वी-१,तिर्यंचगति - १, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी-१, शुरू की जाति-४, अन्त के संस्थान-५, अन्त के संहनन-५, अप्रशस्तस्पर्श-८, अप्रशस्तरस-५,अप्रशस्तगन्ध-२,अप्रशस्तवर्ण-५,उपघात १, अप्रशस्त विहायोगति-१, स्थावर-१, सूक्ष्म-१, अपर्याप्त-१, अनादेय-१,
अयशःकीर्ति-१, अशुभ-१, दुर्भग-१, दुःस्वर-१, अस्थिर-१ और साधारण-१)। प्रश्न २४८ - पुण्य प्रकृतियाँ कितनी और कौन-कौन सी है? उत्तर - पुण्य प्रकृतियाँ अड़सठ हैं। कर्म की समस्त प्रकृतियाँ १४८ हैं, उनमें नामकर्म की स्पर्श