Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 191
________________ १७६ २.शरीरपर्याप्ति-जिन परमाणुओं को खलभागरूप परिणमित किया था, उनसे हड्डी आदि कठिन अवयवरूप और जिनको रसभागरूप परिणमित किया था, उनसे रुधिर आदि द्रवरूप परिणमित कराने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को शरीरपर्याप्ति कहते हैं। ३. इन्द्रियपर्याप्ति - आहारवर्गणा के परमाणुओं को इन्द्रिय के आकाररूप परणिमित कराने तथा इन्द्रिय द्वारा विषय-ग्रहण करने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को इन्द्रियपर्याप्ति कहते हैं। ४.श्वासोच्छवासपर्याप्ति-आहारवर्गणा के परमाणुओं को श्वासोच्छवासरूपपरिणमित कराने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को श्वासोच्छवास पर्याप्ति कहते हैं। ५. भाषापर्याप्ति- भाषावर्गणा के परमाणुओं को वचनरूप परिणमित कराने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को भाषापर्याप्ति कहते हैं। ६.मनःपर्याप्ति - मनोवर्गणा के परमाणुओं को हृदय स्थान में आठ पाँखुरी के कमलाकार मनरूप परिणमित कराने में तथा उसके द्वारा यथावत् विचार करने में कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को मनःपर्याप्ति कहते हैं। एकेन्द्रिय जीवों में भाषा और मन के बिना चार पर्याप्तियाँ होती हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में मन के बिना पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में सभी छह पर्याप्तियाँ होती हैं। इन सब पर्याप्तियों के पूर्ण होने का काल अन्तर्मुहूर्त है, वहाँ एक-एक पर्याप्ति के पूर्ण होने का काल भी अन्तर्मुहूर्त है और सबका मिलकर भी अन्तर्मुहूर्त है। तथा एक से दूसरे का, दूसरे से तीसरे का, इसी तरह छटवीं पर्याप्ति पहले तक का काल, क्रम से बड़ा-बड़ा अन्तर्मुहूर्त है। अपने-अपने योग्य पर्याप्तियों का प्रारम्भ तो एक साथ होता है किन्तु पूर्णता क्रम से होती है। जब तक किसी जीव की शरीर-पर्याप्ति पूर्ण तो न हो लेकिन नियम से पूर्ण होने वाली हो, तब तक उस जीव को निर्वृत्यपर्याप्तक कहते हैं। जिसकी शरीर पर्याप्ति पूर्ण हो उसे पर्याप्तक कहते हैं। प्रश्न २०७- अपर्याप्ति, अपर्याप्त अथवा लब्ध्यपर्याप्त नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से जीव एक भी पर्याप्ति पूर्ण न करके, श्वास के अठारहवें भागप्रमाण अन्तर्मुहूर्त काल में ही मरण को प्राप्त होते हैं उसे अपर्याप्ति, अपर्याप्त अथवा लब्ध्यपर्याप्त नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न २०८- प्रत्येक नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से एक शरीर का एक ही जीव स्वामी हो उसे प्रत्येक नामकर्म कहते हैं। प्रश्न २०९- साधारण नामकर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से एक शरीर के अनेक जीव स्वामी हों उसे साधारण नामकर्म कहते हैं। प्रश्न २१० (अ)- स्थिर नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर के धातु और उपधातु अपने-अपने स्थान पर रहते हैं उसे स्थिर नाम कर्म कहते हैं।

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