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प्रश्न १८४- वजवृषभनाराच संहनन किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में वज्रमय हड्डियाँ, वज्रमय वेष्टन और वज़मय कीलियाँ होती
हैं। उसे वजवृषभनाराच संहनन कहते हैं। प्रश्न १८५- वजनाराच संहनन किसे कहते हैं? उत्तर
- जिस कर्म के उदय से शरीर में वजमय हड्डियाँ और वजमय कीलियाँ होती हैं परन्तु वेष्टन
वज़मय नहीं होते उसे वजनाराच संहनन कहते हैं। प्रश्न १८६- नाराच संहनन किसे कहते हैं?
- जिस कर्म के उदय से शरीर में वज़मय विशेषण से रहित हड्डियाँ, वेष्टन और कीलियाँ होती
है उसे नाराच संहनन कहते हैं। प्रश्न १८७- अर्द्धनाराच संहनन किसे कहते हैं? उत्तर जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डियों की सन्धियाँ अर्द्धकीलित होती हैं उसे अर्धनाराच
संहनन कहते हैं। प्रश्न १८८- कीलक संहनन किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डियाँ परस्पर कीलित होती हैं उसे कीलक संहनन
उत्तर
कहते हैं।
प्रश्न १८९- असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में हड्डियाँ मात्र माँस, स्नायु आदि से लपेटकर संघटित होती
हैं। परस्पर कीलित नहीं होती, उसे असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन कहते हैं। प्रश्न १९०- वर्ण नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में रंग होता है उसे वर्ण नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९१- गन्ध नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में गन्ध होती है उसे गन्ध नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९२- रस नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में रस होता है उसे रस नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९३- स्पर्श नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर में स्पर्श होता है उसे स्पर्श नाम कर्म कहते हैं। प्रश्न १९४ - आनुपूर्वी नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर जिस कर्म के उदय से विग्रहगति में आत्मा के प्रदेशों का आकार पूर्व शरीर के आकार का
रहता है उसे आनुपूर्वी नाम कर्म कहते हैं। (विग्रह गति की परिभाषा - प्रश्न क्र. २३८ देखें) (जिस कर्म के उदय से जीव का इच्छित गति में गमन होता है उसे आनुपूर्वी नाम कर्म कहते हैं।)
(-धवला ६/१,९,२८/५६) प्रश्न १९५- अगुरुलघु नाम कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिस कर्म के उदय से शरीर लोहे के गोले के समान भारी और आकवृक्ष के फूल के समान
हलका नहीं होता है उसे अगुरुलघु नाम कर्म कहते हैं।