Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 180
________________ १६५ चारिख को प्रश्न ११४- देशचारित्र किसे कहते हैं? उत्तर - श्रावक के व्रतों (अणुव्रतों) को देशचारित्र कहते हैं। (निश्चय सम्यग्दर्शनसहित अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यानावरण कषायों के अभावपूर्वक आत्मा में चारित्र की आंशिक शुद्धि प्रगट होती है, वह निश्चय देशचारित्र है। इस आंशिक शुद्धि के साथ श्रावकदशा में व्रतादिरूप शुभभाव होते हैं। वहाँ शुद्ध (निश्चय) देशचारित्र से धर्म होता है और व्यवहार व्रतादिक से शुभबन्ध होता है। निश्चयचारित्र के बिना सच्चा व्यवहारचारित्र भी नहीं हो सकता।) (- लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न ९८) प्रश्न ११५- सकलचारित्र किसे कहते हैं? उत्तर मुनियों के व्रतों (महाव्रतों) को सकलचारित्र कहते हैं। (निश्चय सम्यग्दर्शनसहित चारित्रगुण की शुद्धि की वृद्धि होने से (अनन्तानुबन्धी आदि तीन कषायों के अभाव पूर्वक) आत्मा में उत्पन्न होने वाली (भावलिंगी मुनिपद के योग्य) विशेष शुद्धि को सकलचारित्र कहते हैं। मुनिपद में २८ मूलगुण आदि के शुभभाव होते हैं, उसे व्यवहार सकलचारित्र कहते हैं। निश्चयचारित्र आत्माश्रित होने से मोक्षमार्ग है, धर्म है और व्यवहारचारित्र पराश्रित होने से बन्धभाव है, मोक्षमार्ग नहीं।) प्रश्न ११६- यथाख्यातचारित्र किसे कहते हैं? उत्तर - कषायों के सर्वथा अभाव से (प्रादुर्भूत) होने वाली आत्मा की शुद्धि विशेष को यथाख्यात चारित्र कहते हैं। प्रश्न ११७- सुख किसे कहते हैं? उत्तर - आल्हाद रूप आत्मा के परिणाम विशेष को सुख कहते हैं। प्रश्न ११८- वीर्य किसे कहते हैं? उत्तर - आत्मा की शक्ति या बल को वीर्य कहते हैं। (वीर्यगुण की पर्याय को वीर्य या पुरुषार्थ कहते हैं।) प्रश्न ११९- भव्यत्वगुण किसे कहते हैं? उत्तर - जिस शक्ति के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र प्रगट होने की योग्यता होती है उसे भव्यत्वगुण कहते हैं। प्रश्न १२०- अभव्यत्वगुण किसे कहते हैं? उत्तर - जिस शक्ति के कारण आत्मा में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र प्रगट होने की योग्यता नहीं होती है उसे अभव्यत्वगुण कहते हैं। प्रश्न १२१- जीवत्वगुण किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस शक्ति के कारण आत्मा प्राण धारण करता है उसे जीवत्वगुण कहते हैं। (जिस शक्ति के कारण आत्मा चैतन्यमात्र भावप्राण को धारण करता है, उसे जीवत्वशक्ति कहते हैं।) (- समयसार परिशिष्ट, ४७ शक्ति) प्रश्न १२२- प्राण किसे कहते हैं? उत्तर जिनके संयोग से जीव जीवन अवस्था और वियोग से मरण अवस्था को प्राप्त होता है उन्हें प्राण कहते हैं। प्रश्न १२३- प्राण के कितने भेद है? उत्तर - प्राण के दो भेद हैं - द्रव्यप्राण और भावप्राण। प्रश्न १२४- द्रव्यप्राण के कितने भेद हैं? उत्तर - द्रव्यप्राण के दस भेद हैं - मनबल, वचनबल, कायबल, स्पर्शन इन्द्रिय, रसना इन्द्रिय,

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