Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 173
________________ १५८ । कहाँ है? E ] अलोकालाश के मध्य में अ आकार कैसा है? पुरुषाकार अथवा डेढ मुझमाकार घनफल कितना है ? ३४३ घनराजू (१४ गुणित छ गुणित ३.७) उंचाई कितनी है ? | सर्वत्र चौदह राजू लंबाई कितनी है ? PN सर्वत्र सात राजू | उत्तर-दक्षिण चौड़ाई कितनी है? पूर्व-पश्चिम श्रीसत ३.राजू- तल में मध्य में वलोकना मात्र रूपर +औसत लोक तीन भागों में विभाजित है - १. अधोलोक, २. मध्यलोक और ३. ऊर्ध्वलोक । सम्पूर्ण लोक के बाहर दशों दिशाओं में अनन्त अलोकाकाश है। (- जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग ३, पृष्ठ ४३८ के आधार पर) प्रश्न ०५७- धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य खण्डरूप हैं अथवा अखण्डरूप तथा इनका स्थान कहाँहै? उत्तर - धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य दोनों एक-एक अखण्ड द्रव्य हैं और दोनों ही समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं। प्रश्न ०५८- प्रदेश किसे कहते हैं? उत्तर आकाश के जितने भाग में एक पुद्गल परमाणु व्याप्त होता है उसे प्रदेश कहते हैं। (प्रश्न - किस द्रव्य में कितने प्रदेश हैं? उत्तर - एक जीव, धर्म और अधर्म द्रव्य के असंख्यात प्रदेश हैं। आकाश के अनंत प्रदेश हैं। पुदगल स्कन्ध के संख्यात, असंख्यात और अनन्त - इस तरह तीनों प्रकार के प्रदेश हैं। कालद्रव्य और पुद्गलपरमाणु एकप्रदेशी (-लघु जैन सिद्धांत प्रवेशिका, प्रश्न ५५) प्रश्न ०५९- कालद्रव्य कितने हैं और कहाँ है? उत्तर - लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं, उतने ही कालद्रव्य हैं अर्थात् लोक प्रमाण असंख्यात हैं क्योंकि लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक कालद्रव्य (कालाणु) स्थित है। प्रश्न ०६०- पुद्गलद्रव्य कितने हैं और उनका स्थान कहाँ है ? उत्तर - पुद्गलद्रव्य अनन्तानन्त हैं और वे भी समस्त लोकाकाश में भरे हुए हैं। प्रश्न ०६१- जीवद्रव्य कितने और कहाँ हैं? उत्तर - जीवद्रव्य अनन्त हैं और वे समस्त लोकाकाश में भरे हुए हैं।

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