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अपरम्पार है, इसकी कोई सीमा नहीं है (रमन जिनु) ऐसे वीतराग स्वभाव में रमण करो (दिस्टि सब्द) दृष्टि में अर्थात् उपयोग में जिन वचनों के अनुसार (उत्पन्न जिन) वीतराग जिन स्वरूप उत्पन्न हो गया है, यही उत्तम मार्दव धर्म है। सार सिद्धांत- स्वभाव के आश्रय से ज्ञान आदि आठ मदों का अभाव होना उत्तम मार्दव धर्म है।
आर्जव आयरन सु चरन रमन जिनु, उववन्न समय सम समय जिनं । न्यान विन्यान सु आर्जव ममलं, न्यान अन्मोय सु विष विलयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ५ ॥
॥ उव उवन ॥ (आर्जव) आर्जव धर्म (सु चरन) सम्यक्चारित्र रूप (आयरन) आचरण (रमन जिनु) अपने जिन स्वभाव में रमण करना है (समय सम) शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय पूर्वक (न्यान विन्यान सु) ज्ञान विज्ञानमयी अपने (समय जिन) वीतराग शुद्धात्म स्वरूप (ममलं) ममल स्वभाव में रहने से (आर्जव) उत्तम आर्जव धर्म (उववन्न) प्रकट होता है (न्यान अन्मोय सु) अपने ज्ञान स्वभाव में लीन होने से (विष विलय) रागादि का विष विलय अर्थात् क्षय हो जाता है। सार सिद्धांत-स्वभाव के आश्रय से माया कषाय रूपकुटिलता का अभाव होना उत्तम आर्जव धर्म है।
सत्यं तं सहजनन्द जिनु रमनं, रमन विंद रै उवन समं । भय सल्य संक विलयंत जिनय जिन निसंक सब्द दिपि दिप्ति रमं ॥ उव सम षिम रमन स ममल पयं ॥ ६ ॥
॥ उव उवन ॥ (सहजनन्द जिनु रमन) सहजानंदमयी जिन स्वभाव में रहना ही (सत्यं तं) उत्तम सत्य धर्म है (रमन विंदरै) सानंद निर्विकल्प स्वभाव में रति पूर्वक रमणता से (उवन सम) अपूर्व समभाव अर्थात् वीतरागता उदित होती है (जिनय जिनु) वीतराग स्वभाव कोजीतने पर (भय सल्यसंक विलयंत) भय शल्य शंकायें विला जाती हैं (निसंक) नि:शंक होकर (सब्द) जिन वचनों के अनुसार (दिपि दिप्ति रम) परम दैदीप्यमान ज्ञान स्वभाव में लीन रहो अर्थात् द्रव्य दृष्टि पूर्वक अपने द्रव्य स्वभाव को देखो यही उत्तम सत्य धर्म है। सार सिद्धांत - स्वभाव के आश्रय से झूठ पाप का अभाव होना और सत् स्वरूप में आचरण होना यही उत्तम सत्य धर्म है।
सौच्य सहकार सहज रै रमनं, हिययार उवन पय उवन रमं । उव उवन मिलन उव उवन विलन, तं भुक्त उवनु सुइ भुक्त विलं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ ७ ॥
॥ उव उवन ॥ (सहज) सहज स्वभाव का (सहकार) सहकार कर (रै रमन) रति पूर्वक रमण करो, यही (सोच्य) शुचिता अर्थात् उत्तमशौचधर्म है (उवनरम) इस रमणता का उदय होनाही (हिययार उवनपय) हितकारीपद का प्रकट होना है (उव उवन मिलन) स्वानुभव में ओंकार स्वरूप से मिलो (उव उवन) परमात्म सत्ता स्वरूप के उदय होने पर (विलन) पर भाव विला जायेंगे (तं भुक्त उवनु) स्वानुभव में स्वभाव का भोग करने पर (सुइ भुक्त विल) अशुद्ध पर्याय का भोग करना स्वयं ही विला जायेगा। सार सिांत-स्वभाव के आश्रय सेलोभ कषाय का अभाव होना, निर्लोभता,शुचिता का प्रगट होना उत्तम शौच धर्म है।