Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ प्रश्न - ब्रह्मचर्याणुव्रत किसे कहते हैं ? उत्तर - पूर्णतया स्त्रीसेवन का त्याग ब्रह्मचर्य व्रत है । जो ग्रहस्थ इसे धारण करने में असमर्थ हैं, वे स्वस्त्री में संतोष करते हैं और परस्त्री रमण के भाव को सर्वथा त्याग देते हैं, यह व्रत एकदेश रूप होने से ब्रह्मचर्याणुव्रत कहलाता है। प्रश्न - परिग्रह प्रमाण अणुव्रत किसे कहते हैं? उत्तर - अपने से भिन्न पर पदार्थों में ममत्व बुद्धि होना परिग्रह है। यह अंतरंग और बहिरंग के भेद से दो प्रकार का होता है। मिथ्यात्व, क्रोध, मान,माया,लोभ, तथा हास्यादि नौ नो कषाय यह चौदह अंतरंग परिग्रह के भेद हैं। जमीन, मकान, सोना, चांदी, धन, धान्य, दास, दासी, बर्तन, वस्त्र आदि बाह्य परिग्रह के १० भेद हैं। इन परिग्रहों में ग्रहस्थ के मिथ्यात्व नामक परिग्रह का पूर्णरूप से त्याग हो जाता है तथा बाकी अंतरंग परिग्रहों का कषायांश के सद्भाव के कारण एकदेश त्याग होता है। वह बाह्य परिग्रह की सीमा निर्धारित कर लेता है इसे परिग्रह प्रमाण अणुव्रत कहते हैं। प्रश्न - गुणव्रत किसे कहते हैं और कितने होते हैं? उत्तर - जो अणुव्रतों में गुणित क्रम से वृद्धि करे उसे गुणव्रत कहते हैं। गुणव्रत के तीन भेद होते हैं। १. दिग्व्रत- सांसारिक विषय कषाय, पाँच पाप, सावध योग और सूक्ष्म पापों की निवृत्ति के लिये मरण पर्यन्त दसों दिशाओं में आने-जाने की मर्यादा कर लेना दिव्रत है। देशव्रत-जीवन पर्यन्त के लिए की गई दिव्रत की विशाल सीमा को घड़ी, घंटा, दिन, सप्ताह, माह आदि काल की मर्यादा पूर्वक सीमित कर लेना देशव्रत है। अनर्थदंड त्याग व्रत-बिना प्रयोजन हिंसादि पापों में प्रवृत्ति करना या उस रूप भाव करना अनर्थदंड है और उसके त्याग को अनर्थदंड त्याग व्रत कहते हैं। उसके पाँच भेद हैं। १. अपध्यान त्याग व्रत, २. पापोपदेश त्याग व्रत, ३. प्रमादचर्या त्याग व्रत, ४. हिंसादान त्याग व्रत, ५. दुःश्रुति त्याग व्रत। प्रश्न - शिक्षाव्रत किसे कहते हैं और कितने होते हैं ? उत्तर - जिनसे मुनिव्रत पालन करने की शिक्षा प्राप्त हो उसे शिक्षाव्रत कहते हैं। इसके चार भेद हैं १. सामायिक २. प्रोषधोपवास ३. भोगोपभोग परिमाण ४. अतिथि संविभाग। प्रश्न - सामायिक शिक्षाव्रत किसे कहते हैं? उत्तर - सम्पूर्ण पर द्रव्यों में राग-द्वेष के त्याग पूर्वक समता भाव का अवलम्बन करके आत्म भाव की प्राप्ति करना सामायिक है । व्रती श्रावकों द्वारा प्रातः दोपहर, सायं कम से कम अन्तर्मुहूर्त एकान्त स्थान में सामायिक करना सामायिक शिक्षाव्रत है। प्रश्न - सामायिक की विधि क्या है? उत्तर - श्रावकों को तीनों समय उत्कृष्ट छह घड़ी, मध्यम चार घड़ी, जघन्य दो घड़ी तक पाँचों पापों तथा आरम्भ परिग्रह त्याग करके एकान्त स्थान में मन शुद्ध करके पहले पूर्व दिशा में नमस्कार करना अर्थात् अंगों को भूमि से लगाकर नमन करना फिर नौ बार नमस्कार मंत्र का जाप

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211