Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 165
________________ १५० आपने अपना सम्पूर्ण जीवन प्राणीमात्र के हित के लिए व्यतीत किया और व्यापार के क्षेत्र में भी उन्होंने पूर्ण ईमानदारी का परिचय दिया। __ एक बार जब मुरैना के बाजार में आग लग गयी तो दूसरे व्यापारियों की तरह उन्हें भी बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। सबके व्यापार का बीमा था। यद्यपि अनेक व्यापारियों ने बीमा कम्पनी से अपने माल से बहुत ज्यादा राशि वसूल की तथापिगोपालदासजी ने मात्र अपने नुकसान की रकम को ही बीमा कम्पनी के सामने प्रस्तुत किया। पं. गोपालदासजी अपने जीवन में छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देते थे। एक बार उनकी पत्नी ने उनको बिना बताये विद्यालय के बढ़ई से अपने बच्चों के लिए कुछ खिलौने बनवा लिये, जिसे बनाने में उसे मात्र दो घण्टे का समय लगा। जब गोपालदासजी को यह पता चला तो वे काफी नाराज हुए और उतने काम की राशि विद्यालय के खाते में जमा करा दी। जब अन्य लोगों ने उनसे पूछा कि आपने इतनी छोटी सी राशि की चिन्ता क्यों की तो उन्होंने कहा कि पाप का प्रारम्भ छोटे पाप से ही होता है, वही आगे जाकर बड़े पाप का रूप धारण करता है। ऐसी अनेक घटनायें उनके जीवन में घटित हुईं, जो उनके 'सादा जीवन, उच्च विचार' की सूक्ति को चारितार्थ करती हैं। उनके कार्य उनके उज्जवल विचारों के दर्पण थे। वे एक ईमानदार, धार्मिक और न्यायप्रिय व्यक्ति थे। उनका देहावसान मात्र ५१ वर्ष की अल्पायु में सन् १९१७ अर्थात् वि. सं. १९७३ चैत्र वदी पंचमी के दिन उनकी कर्मस्थली मुरैना में हुआ। श्री जैन सिद्धान्त प्रवेशिका : संक्षिप्त परिचय सर्वप्रथम गुरुवर्य स्वर्गीय श्री पं. गोपालदास वरैयाजी ने 'श्री जैन सिद्धान्त दर्पण' नामक एक स्वतन्त्र कृति की रचना की। यद्यपि यह उनकी सर्वप्रथम कृति है, तथापि इसमें उनकी अद्भुत प्रौढ़ता का परिचय मिलता है, इस कृति के संबंध में पं. श्री फूलचंद सिद्धान्तशास्त्री के विचार दृष्टव्य हैं - "यद्यपि जैन सिद्धांत का रहस्य प्रगट करने वाले श्री कुन्दकुन्दाचार्य के समान महान आचार्यों के बनाये हुए बड़े- बड़े अनेक ग्रन्थ अब भी मौजूद हैं, पर उनका असली ज्ञान प्राप्त करना असम्भव नहीं तो दुःसाध्य अवश्य है; इसलिए जिस तरह सुचतुर लोग जहाँ पर कि सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच सकता, वहाँ पर भी बड़े-बड़े चमकीले दर्पण आदि पदार्थों के द्वारा रोशनी पहुँचाकर अपना काम चलाते हैं, उसी तरह जटिल जैन सिद्धान्तों के पूर्ण प्रकाश को किसी तरह इन जीवों के हृदय मन्दिर में पहुँचाने के लिए 'जैन सिद्धान्त दर्पण' की आवश्यकता है। शायद आपने ऐसे पहलदार दर्पण भी देखे होंगे, जिनके द्वारा उलट - फेरकर देखने से भिन्न-भिन्न पदार्थों का प्रतिभास होता है, उसी तरह इस 'जैन सिद्धान्त दर्पण' के भिन्न-भिन्न अधिकारों द्वारा सिद्धांत विषयक भिन्न-भिन्न पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकेगा।" इसी प्रकार जिनागम में प्रवेश करने के उद्देश्य से उन्होंने बालावबोधिनी'श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका' की रचना की। यद्यपि परवर्ती चिन्तकों को यह रचना भी क्लिष्ट जान पड़ी तो उन्होंने इसे आधार बनाकर लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका की रचना की। यह सम्पूर्ण रचना ६७१ प्रश्नोत्तरों में निबद्ध है। इस रचना को पाँच प्रमुख अध्यायों में विभक्त किया गया है। यद्यपि उन्होंने अध्यायों का नामकरण नहीं किया है। लेकिन उन्होंने अध्यायों को उनकी विषय वस्तु

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