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गुण पाठ पूजा में वर्णित पंच परमेष्ठी के १४३ गुण
अरिहंत परमेष्ठी के ४६ गुण जन्म के १०अतिशय केवलज्ञान के १०अतिशय देवकृत १४ अतिशय
प्रतिहार्य १. अत्यंत सुंदरता १. सौ योजन तक सुकाल |१. अर्धमागधी भाषा ११. हर्षमय सृष्टि |१. अशोक वृक्ष २. सुगंध
२. चार अंगुल ऊपर २. बैर रहितपना १२. धर्म चक्र २. सिंहासन ३. पसीना रहित
३. चतुर्दिश मुख ३. निर्मल दिशा १३. अष्ट मंगल |३. तीन छत्र ४. मल मूत्र न होना ४. हिंसा का अभाव |४. षट् ऋतु फल फूल |१४. निर्मल आकाश| ४. भामण्डल ५. हितमित प्रिय वचन ५. उपसर्ग रहित ५. दर्पण सम पृथ्वी
५. दिव्य ध्वनि ६. अतुल्य बल ६. कवलाहार न लेना ६.चरणो के नीचे कमल
६.पुष्प वर्षा ७. श्वेत रक्त ७. सर्व विद्याओं के ज्ञाता ७. नभ में जय जयकार
७. चौंसठ चँवर ८.१००८ लक्षण ८.नखकेश न बढ़ना ८. मंद सुगंध वायु
८. दुन्दुभि ९. समचतुरस्र संस्थान ९. अपलक दृष्टि |९. गन्धोदक वृष्टि १०. वज़ वृषभ नाराच संहनन १०. परछाई न पड़ना |१०. कंटक रहित भूमि
आत्माश्रित ४ गुण - अनंत चतुष्टय गुण- | अनंत दर्शन
अनंत ज्ञान अनंत सुख
अनंतवीर्य अभाव - | दर्शनावरण कर्म
ज्ञानावरण कर्म मोहनीय कर्म
अंतराय कर्म सिद्ध परमेष्ठी के ८ मूलगुण गुण
| सम्यक्त्व | अनंत ज्ञान | अनंत दर्शन | अनंतवीर्य सक्ष्मत्व | अवगाहनत्व | अगुरुलघुत्व | अव्याबाधत्व अभाव- मोहनीय | ज्ञानावरणी | दर्शनावरणी | अंतराय | नामकर्म | आयु कर्म गोत्र कर्म | वेदनीय
आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण दशलक्षण धर्म बारह तप
पाँच आचार षट् आवश्यक तीन गुप्ति १. उत्तम क्षमा |६. उत्तम संयम | १. अनशन ७. प्रायश्चित |१. दर्शनाचार|१. समता १. मनोगुप्ति २. उत्तम मार्दव |७. उत्तम तप |२. ऊनोदर ८. विनय २. ज्ञानाचार |२. वंदना ।२. वचन गप्ति ३. उत्तम आर्जव ८. उत्तम त्याग ३. वृत्तिपरिसंख्यान | ९. वैयावृत्ति |३. वीर्याचार |३. स्तुति ३. काय गुप्ति ४. उत्तम सत्य |९. उत्तम आकिंचन ४. रस परित्याग १०. स्वाध्याय | ४. तपाचार |४. प्रतिक्रमण ५. उत्तम शौच | १०. उत्तम ब्रह्मचर्य | ५. विविक्तशय्यासन|११. व्युत्सर्ग |५.चारित्राचार ५. स्वाध्याय ६. काय क्लेश १२. ध्यान
|६. कायोत्सर्ग उपाध्याय परमेष्ठी के २५ मूलगुण ग्यारह अंग
चौदह पूर्व १. आचारांग ७. उपासकाध्ययनांग १. उत्पाद पूर्व ७. सत् प्रवाद | १३. क्रियाविशाल २. सूत्रकृतांग ८. अंतः कृत दशांग २. अग्रायणी पूर्व
८. आत्म प्रवाद | १४. लोक बिंदु सार ३. स्थानांग ९. अनुत्तरोत्पादक दशांग ३. वीर्यानुवाद ९. प्रत्याख्यान ४. समवायांग १०. प्रश्न व्याकरणांग ४. अस्ति नास्ति १०. विद्यानुवाद ५. व्याख्या प्रज्ञप्ति | ११. विपाक सूत्रांग । ५. ज्ञान प्रवाद ११. कल्याणवाद ६. ज्ञातृकथांग | १२. दृष्टि वादांग
६. कर्म प्रवाद १२. प्राणानुवाद
साधु परमेष्ठी के २८ मूलगुण पाँच महाव्रत- अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत, परिग्रह त्याग महाव्रत । पाँच समिति-ईर्या समिति. भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति, प्रतिष्ठापना समिति । पाँच इन्द्रिय निरोध-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्ष और कर्ण इन्द्रिय के विषय में राग-द्वेष नहीं करना। षट् आवश्यक - समता, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग । सात अन्य गुण - भूमिशयन, केशलुंचन, एकासन, खड़े - खड़े आहार, स्नान त्याग, वस्त्र त्याग, दातून त्याग ।