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आकिंचन आयरन जिनय जिनु अर्थति अर्थ सु ममल पयं । षट् कमलह तह अंगदि अंगह, आयरन धम्म तं मुक्ति पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ।। ११ ।।
॥ उव उवन ॥ (जिनु जिनय) वीतरागी पद को जीतना अर्थात् निर्ग्रन्थ साधु पद धारण करके (अर्थति) प्रयोजनीय रत्नत्रयमयी (सु ममल पर्यं) अपने ममल पद में (आयरन) आचरण करना (आकिंचन) उत्तम आकिंचन्य धर्म है (षट् कमलह तह) तथा षट् कमल की साधना के द्वारा (अंगदि अंगह) सर्वांग शुद्ध स्वभाव रूप (आयरन धम्म) धर्म में आचरण ( तं मुक्ति पयं) मुक्ति पद को देने वाला है ।
सार सिद्धांत स्वभाव के आश्रय से चौबीस प्रकार के परिग्रह का त्याग कर निःस्पृह आकिंचन्य निर्ग्रन्थ वीतरागी हो जाना उत्तम आकिंचन्य धर्म है ।
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बंभ चरन आयरन अरुह रुइ, षट् रमन रयन सुइ जिनय जिनं । अबंभ रमन सुइ विलय सहज जिनु, अन्मोय न्यान सुइ बंभ पयं ॥ उव सम षिम रमन सु ममल पयं ॥ १२ ॥
॥ उव उवन ॥
(अरुह रूइ) अरिहंत अर्थात् परमात्म स्वरूप में रुचि पूर्वक (आयरन) आचरण करना (बंभ चरन) उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है (षद् रमन) षट् रमन अर्थात् छह प्रकार से स्वरूप रमण की साधना के द्वारा (सुइ रयन) अपने रत्नत्रयमयी (जिन जिनय) जिनेन्द्र स्वरूप को जीतो अर्थात् प्रकट करो (सहज जिनु) सहजानन्द जिन स्वभाव में रहो, इससे (अबंभ रमन) अब्रह्म रूप पर पर्याय में रमण करना (सुइ विलय) स्वयं विला जायेगा (अन्मोय न्यान ) ज्ञान स्वभाव के आश्रय से (सुइ पर्य) निज पद में रहना ही (बंभ) ब्रह्मचर्य धर्म है।
सार सिद्धांत स्वभाव के आश्रय पूर्वक कुशील पाप का त्याग और पाँच इन्द्रियों के २७ विषयों पर विजय प्राप्त करना, ब्रह्म स्वरूप में चर्या करना उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है ।
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दह विहि आयरन सुयं जिन रमनं भय षिपनिकु सुइ अमिय रसं । तारन तरन सुविंद रमन जिनु अन्मोय समय सिहु मुक्ति जयं ॥ उव समषिम रमन सु ममल पयं ॥ १३ ॥
॥ उव उवन ॥
(सुयं जिन रमनं) अपने जिन स्वभाव में रमण करना (दह विहि आयरन) दशलक्षण धर्म का आचरण है (सुइ अमिय रसं) अतीन्द्रिय अमृत रस का पान करने से (भय षिपनिकु) समस्त पर्यायी भय क्षय हो जाते हैं (तारन तरन सु) अपने तारण तरण (जिनु) जिन स्वभाव की (विंद) निर्विकल्प स्वानुभूति में (रमन) रमण करो (अन्मोय समय) स्वसमय शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय से (सिहु) शीघ्र ही अर्थात् अल्प समय में ही (मुक्ति जयं) मुक्ति की प्राप्ति होती है ।
भावार्थ - धम्म आयरन फूलना, आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित श्री भय षिपनिक ममल पाहुड़ जी ग्रन्थ की सत्त्याशीवीं फूलना है। इस फूलना में धर्म के दश लक्षणों का उत्कृष्ट स्वरूप निरूपित किया गया है। धम्म आयरन फूलना को लोक भाषा में धर्माचरण