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प्रश्न ३- लघुउत्तरीय प्रश्न -
(क) सम्यग्ज्ञान के भेद लिखिए। उत्तर - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान, केवलज्ञान ये पाँच सम्यग्ज्ञान के भेद हैं।
(ख) करणानुयोग की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के भेद लिखिए। उत्तर - करणानुयोग की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के ३ भेद हैं - उपशम, क्षयोपशम, क्षायिक । प्रश्न ४-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न -
(क) सम्यग्दर्शन विषय पर टिप्पणी लिखिए। (ख) "रत्नत्रय मोक्ष का मार्ग' विषय पर संक्षिप्त निबंध लिखिए । आवश्यकतानुसार चार्ट
बनाइये।
वस्तु स्वभाव का रहस्य ज्ञानी पुरुष यह जानता है कि जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य दोनों द्रव्यों में यही सबसे बड़ा अन्तर है कि जीव अपनी परिणति को जानता है। पुद्गल के परिणमन को जानता है। पुद्गलकर्म की उदय जन्य अवस्था को जानता है। किन्तु पुद्गल द्रव्य न तो अपने परिणमन को जानता है । न अपने परिणाम के फल को जानता है। और न जीव ही को और उसकी परिणति को जानता है क्योंकि वह अचेतन जड़ द्रव्य है। इस प्रकार परस्पर विरुद्ध लक्षण धारण करने वाले जीव और अजीव दोनों द्रव्यों में,गुणों में तथा दोनों की पर्यायों में अत्यन्त भेद है। उनमें एक दूसरे की पर्यायों से तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकता।
जो स्वाधीन हो वह स्वभाव कहलाता है, परंतु जो पर के आधीन हो वह विभाव होता है।
ज्ञानी जीव वस्तु स्वरूप को समझता है अत: वह पर को पर वस्तु जान कर मोह नहीं करता अत: बन्ध नहीं करता। वह वस्तु के स्वभाव का मात्र ज्ञाता होता है। पर वस्तु के साथ उसका मात्र ज्ञेय-ज्ञायक संबंध है। अत: वह संसार के सम्पूर्ण परिवर्तन को तटस्थ रहकर मात्र देखता जानता है, उसमें लीन नहीं होता। इस प्रकार भेदविज्ञानी पर के कर्तृत्व भाव से विरक्त रहता है।
शुद्ध निश्चयनय के द्वारा जो शुद्ध आत्मा का ज्ञान है वह निश्चय सम्यग्ज्ञान है, ऐसा जानकर जब कोई अपने आत्मा को अपने आत्मा में निश्चल रूप से ध्याता है उस ज्ञानी को एक ज्ञानघन आत्मा ही अनुभव में आता है।