Book Title: Gacchayar Painnayam Author(s): Trilokmuni Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छायार पइएणयं वीरिएणं त जीवस्स, समुच्छलिएणं गोयमा! । जम्मतरकए पावे, पाणी मुहुत्तण निदहे ॥६॥ हे गौतम ! जिस समय इस जीव में वीरता का सञ्चार होता है तो यह जीव जन्मजन्मान्तर के पापों को एक मुहूर्त भर में धो डालता है। तम्हा निउणं निहालेउ, गच्छं सम्मग्गपटिठयं । वमिज्ज तत्थ आजम्म, गोयमा ! संजए मुणी ।।७।। ___ इस लिये जो गच्छ सन्मार्ग पर चल रहा है, उस को भली प्रकार देख भाल कर संयत मुनि उस में श्राजीवन रहे ।। अब प्रश्न होता है कि कैसे पता चले कि यह गच्छ सन्मार्ग पर चल रहा है अथवा उन्मार्ग पर ? इस बात का पता लगाने के लिये कि अमुक संस्था कैसी है तो सर्व प्रथम उस वीर्येण तु जीवस्य, समुच्छलितेन गौतम ! । जन्मान्तरकृतानि पापानि, प्राणी मुहूर्तन निदहेन ।।६।। तस्मान्निपुणं निभाल्य, गच्छ सन्मार्गस्थितम् । वसेत्तत्र आजन्म, गौतम ! संयतो मुनिः ॥ ७ ॥ "निउणं' 'क-ग-च-जः' इति सूत्रेण पकारस्य लुक् ।। "निहालेउ' 'कत्वस्तुमत्तूण-तुप्राणा;' ॥८२५४६।। इति सूत्रेण क्त्वाप्रत्यय तुमादेशः, 'क-ग-च-ज' इति सूत्रेण तकारस्य लुक, “एच्च क्त्वा-तुम-तव्य भविष्यत्यु' । ८३।१५.७।। इति सूत्रेण एकारादेशः ॥ “वलिः ' 'वर्तमाना-वा यन्त्योध जना वा' ।।८३॥ १७७ ॥ इति सूत्रण विध्यर्थे प्रत्ययस्य 'ज' आदेशः, ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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