Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यस्वरूपनिरूपण उम्मम्ममठिए सम्मग्ग-नासए जो उ सेवए सूरी । निश्रमेणं सो गोयम !, अप्पं पाडेह संसारे ॥ २६ ॥ जो आचार्य उन्मार्गगामी है और सम्यग् मार्ग का लोप कर रहा है ऐसे आचार्य की सेवा करने वाला शिष्य निश्चय से संसार में गोते खाता है || समुद्र उम्मग्गठियों इक्काऽवि, नासए भव्वसत्तसंघाए । तं मग्गमणुसंरते, जह कुतारो नरो होइ ।। ३० ।। जिस को भली प्रकार तैरना नहीं आता जैसे वह स्वयं डूबता है और साथ में अपने साथियों को भी ले डूबता है इसी प्रकार उलटे मार्ग पर चलता हुआ एक व्यक्ति भी कई एक को ले डूबता है । उन्मग्गमग्गसंपद्विप्राण, साहू गोयमा ! गुणं । संसारो यतो, हाइ य सम्मग्गनासी ॥ ३१ ॥ १५ सत्य मार्ग का लोप करके उलटे मार्ग पर चलने वाले आचार्य निश्चय ही अनंत संसार के चक्र में पड़ जाते हैं । उन्मार्गस्थितान सन्मार्ग - नाशकान् यस्तु सेवते सूरीन् । नियमेन्द स गौतम !, श्रात्मानं पातयति संसारे ॥ २६ ॥ उन्मार्गस्थित एकोऽपि नाशयति भव्यसत्त्वसङ्घातान् । तं मार्गमनुसरतोः, यथा कुतारो नरो भवति ॥ ३० ॥ उन्मार्गमार्गसम्प्रस्थितानां साधूनां गौतम ! नूनम् । संसारश्चानन्तो भवति सन्मार्गनाशिनाम् ॥ ३१ ॥ For Private And Personal Use Only

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