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साध्वीस्वरूपनिरूपण तथा गृहस्यों के घरों में जाकर अथवा उपाश्रय में ही हर समय कथा में--गृहस्थों से वातालाप में लगी रहती है, और युवान पुरुषों के वार बार आने का जो अनुमोदन करती है, तो वह सावी के भेष में जिनशासन की शत्रु है ।।
टिप्पण - इसी प्रकार जो साधु हर समय गृहस्थों से वार्तालाप ही करते रहते हैं और स्वाध्याय प्रतिलेखना गुरु ग्लान आदि की सेवा भक्ति तथा अध्ययन अध्यापन में उपेक्षा भाव रखते हैं और युवितयां से बातें करने में अधिक रुचि रखते हैं तथा उन के वार वार आने की अनुमोदना करते हैं वे भी साधु वेष में जिन शासन के शत्रु हैं। वुडहाणं तरुणाणं, रतिं अज्जा कहेइ जा धम्म । मा गणिणी गुणमागर !, पडिणीमा होइ गच्छस्स॥११॥
हे गणो के सागर गौतम ! यदि मुख्य साध्वी भी रात्रि के समय वृद्धों तथा तरुणो के बीच धर्मकथा करती है तो वह साध्वी गच्छ की वैरण है। जत्थ य समणीणम-संखडाइं गच्छम्मि नेव जायंति ।। तं गच्छं गच्छवरं, गिहत्थभास। उ नो जत्थ ।।११७।।
जिस गच्छ की साध्वियों में परस्पर कलह नहीं होता तथा वृद्वानां तरुणानां, रात्रौ आर्या कथयति या धर्मम् । सा गणिनी गुणसागर !. प्रत्यनीका भवति गच्छस्य ।।११६।। "रति" 'सप्तम्या द्वितीया' इति सूत्रेण द्वितीया ॥ यत्र च श्रमणीनाम-संस्कृतानि गच्छे नैव जायन्ते । म गच्छो गच्छवरः गइस्थभाषास्तु न यत्र ।। ११७ ।।
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