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उपसंहार साम्बीस्वरूपनिरूपण
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समझ लेना चाहिये और साधुस्वरूपनिरूपण नाम के दूसरे अधिकार में जो विषय वर्णन किया गया वह भी यथा योग्य रूप से साध्वियों के सम्बन्ध में जान लेना चाहिये। यहां जो अलग अलग वर्णन किया गया है वह मुख्यता की दृष्टि से किया गया है। कोई बात साधुओं में मुख्यता से होती है तो कोइ साध्वियों में, जैसे कि यह अन्तिम गाथा जिस में असभ्य शब्दों में क्लेश का वर्णन किया गया है, इस विषय की स्त्रीजाति में प्रधानना हैं और पुरुष जाति में गौणता, इस लिये यह गाथा पुरुषाधिकार में न देकर स्त्री अधिकार में दी गई है परन्तु लागू होती है स्त्री और पुरुष दोनों पर समान रूप से ||
अअ ग्रन्थकार ग्रन्थ का उपसंहार करते हुए कहते हैंमहा निसीहकप्पा, ववहाराओ तहेव य । साहुसाहुबिठाए, गच्छायारं समुद्धियं ।। १३५||
महा निशीप, वृहत्कल्प, व्यवहार तथा निशीथ आदि सूत्रों से साधु साध्वियों के लिये यह " गच्छाचारप्रकीकि" नामक ग्रन्थ, समुद्धृत किया है ।।
परंतु सोहुणो एयं, असज्झायं विवज्जिउ ।
उत्तमं सुनिदिं गच्छाया रं सु उत्तमम् ।। १३६ ॥ इस लिये साधु साध्वियां, श्रुत के निचोड़-तत्त्वसाररूप
महानिशीथकल्पात् व्यवहारात् तथैव च । साधुसाध्ठ्यर्थाय, गच्छाचारः समुद्धृतः ।। १३५ ।। पठन्तु साधव एतद्, अस्वाध्यायं विवर्ज्य | उत्तमं श्रुतनिस्यन्दं, गच्छाचारं सूत्तमम् ॥१३६||
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