Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छायार पइएण्य इस उत्तम संकलन गच्छाचारप्रकीर्णक को अस्वाध्यायकाल छोड़ कर पढ़े और इस का चिन्तन एवं मनन करें॥ गच्छायारं सुणिचाणं, पढिता भिक्खु भिक्खणी । कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छन्ता हियमप्पणो ||१३७।। ___ साधु और साध्वियां जो अपनी आत्मा का हित साधना चाहती हैं इस "गच्छाचार प्रकीर्णक" को स्वयं पढ़ कर या दूसरे से सुन कर, उसी प्रकार करें जैसा कि इस में कहा है, ऐसा करने से उन की आत्मा का कल्याण होगा। इति गच्छाचारप्रकीर्णकं समाप्तम् ..."itawr गच्छाचारं श्रुत्वा, पठित्वा भिक्षवो भिक्षुण्यः । कुर्वन्तु यद्यथा भणितं, इच्छन्तो हितमात्मनः ॥१३७।। For Private And Personal Use Only

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