Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छायार पइएणयं सर्वज्ञकथित भगवान के धर्म में विन्न न पड़े इस से डरते हुए तथा संसारभ्रमण अर्थात् जन्ममरण के भय के कारण जिस गच्छ के साधु दूसरों के क्रोध को नहीं जगाते, सदा सद्व्यवहार से पेश आते हैं, ऐसे साधुओं के समुदाय का नाम गच्छ है। कारणमकाणेणं अह, कहवि मुणीण उहहिं कसाए । उदय वि जत्थ रु भहि, खामिजइ जत्य तं गच्छम ||BHI __गुरु अथवा ग्लान आदि की वैयावञ्च आदि के मुख्य कारण अथवा किसी अन्य गौण कारण से यदि कषाय उदय में आते हों तो उन्हें मुनि रोकते हैं अर्थात् उदय में नहीं आने देते यदि इस प्रकार का प्रयत्न करने पर भी कषाय उदय में आ ही जाएं तो तुरन्त उसकी क्षमायाचना करते हैं। हे गौतम ! एसे मुनियों के सम्दाय का नाम ही गच्छ है ॥ सीलतपदाणभाषण, चउविहधम्मतरायभयभीए । जत्थ बहू गीअत्थे, गोश्रम ! गच्छं तयं भणिअम् ॥१०॥ दान,शील तप और भावनारूप चार प्रकार के धर्म में किसी प्रकार की अन्तराय-विन बाधा न पड़े. इस बात को सदैव ध्यान में रखने वाले जिस गच्छ में बहुत से गीतार्थ मुनि हों, हे गौतम ! उसी को वास्तव में गच्छ कहना चाहिये। कारणेनाकारणेन अथ, कथमपि मुनीनामुत्थिताः कषायाः । उदयेऽपि यत्र रुन्धन्ति, क्षमयन्ति यत्र स गच्छः ॥ ६ ॥ "कहवि" मासादेर्वा' ।।१।२६ इति सूत्रेण अनुस्वारस्य लुक, पदादपेर्वा, ॥८॥१॥४३॥ इति सूत्रेण अपेरकारस्य लुक ।। शीलतपदानभावना - चतुर्विधधर्मान्तरायभयभीताः । यत्र बहवो गीतार्थाः, गौतम ! गच्छः सको भणितः ॥१०॥ For Private And Personal Use Only

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