Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुस्वरूपनिरूपण ४५ गच्छ को भली प्रकार देख भाल कर उसी में एक पक्ष के लिये या मास के लिये अथवा सम्पूर्ण जीवन भर रहना चाहिये || खुड्डो वा अहवा सेहो, जत्थ रक्खे उबस्सयम | तरुणो वा जत्थ एगागी, का मेरा तत्थ भासियो ॥ १०६ ॥ जहां छोटी आयुवाला अथवा नवदीक्षित अथवा युवावस्था वाला साधु उपाश्रय का एकाधिकारी बना हुआ हो अर्थात् उस उपाश्रय में जितने साधु रहते हैं जिन में कि स्थविर भी हैं उन सब पर अपना आदेश चलाता हो और उन के कहने की कुछ भी परवाह न करके मनमाने कार्य करता हो तो उस गच्छ में मर्यादाओं का पालन कहाँ हो सकता है ? अर्थात् वह गछ अपनी मर्यादाओं का उल्लङ्घन करने वाला है । यहां साधुस्वरूपनिरूपण नाम का दूसरा अधिकार समाप्त होता है और साध्वीस्वरूपनिरूपण नामक तीसरा अधिकार आरम्भ होता है जत्थ य एगा खुड्डी, एगो तरुणी उ रक्खए वसहिं । गोयम ! तत्थ विहारे, का सुद्धी बंभचेरस्स १ || १०७/ इसी प्रकार छोटी उमर वाली अथवा अल्प दीक्षा वाली तथा युवा अवस्था वाली साध्वी उपाश्रय में अकेली रहती हो तो वहां क्षुल्लको बाथबा शैक्षो, यत्र रक्षेत् उपाश्रयम् । तरुणो वा यत्र एकाकी, का मर्यादा तत्र भाषामहे ! ||१०६ || यत्र चैका क्षुल्लिका, एका तरुणी तु रक्षति वसतिं । गौतम । तत्र विहारे, का शुद्धि ह्यचर्यस्य ? ॥ १०७ ॥ ! For Private And Personal Use Only

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