Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुस्वरूपनिरूपण अपने दुष्ट स्वभावानुसार आचरण करते हुए किसी के राकने पर भी न सकते हो तो उसे खीराज्य के समान दुष्टराज्य नाम भी दिया जा सकता है। जत्य ममुद्द सकाले, साहणं मंड नीइ अञ्जानो। गोयम ! ठयंती पाए, इत्थारज्जन तं गच्छम ॥१६॥ भोजन के समय साधुआ की मण्डली में यदी कोई साध्वी वहां अपना कदम रखती है तो हे गौतम ! वह वास्तविक गच्छ नहीं, अपितु उसे स्त्री राज्य अर्थात् दुष्ट राज्य समझना चाहिये । जत्थ मुणोण कमाया, जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । नेच्छंति समुह उ. सुनिविटठो पंगुलो चेव ।। ६७ ॥ ___ जैसे कोई हाथ पांव से लाचार पङ्ग उठा रहता है ऐसे ही दूसरों के क्रोधद्वारा अपना उठता हुआ क्रोध पङ्ग, के सदृश नहीं उठ पाता अथात् दूसरों के क्रोध करने पर जो क्रोध नहीं करता ऐसे मुनियों से युक्त गच्छ ही वास्तव में गच्छ है। . धम्मतरायभीए, भीए संसारगम्भव सहीण । न उदीरन्ति कमाए, मुणी मुणीणं तयं गच्छम् ।। ६८ ॥ यत्र समुद्दे शकाले, साधूनां मण्डल्यां आर्याः। गौतम ! स्थापयन्ति पादो, स्त्रीराज्यं न स गच्छधः ॥ ६६ ॥ यत्र सुनीनां कषायाः, उदीयमाणा अपि परकषायैः । नेच्छन्ति समुत्थातु, सुनिविष्टः पङ्गुलः चेव ।। १७ ।। धर्मान्तरायभीताः, भीता संसारभवसतिभ्यः । नोदीरयन्ति कषायान, मनयो मुनीनां सको गच्छः ॥१८॥ For Private And Personal Use Only

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