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गच्छायार पइएणयं
बालाए बुड्ढाए, नत्तुअदुहियोइ अहव भइणीए । न य करीइ तणुफरिसं, गोयम ! गच्छं तयं भणियं ।।८४॥
जिस गच्छ में, विशेष कारण उत्पन्न होने पर भी स्त्री के हाथ के स्पर्श को दृष्टिविष सर्प, प्रज्ज्वलिताग्नि एवं हालाहल विष समझा जाता है वह सही गच्छ है तथा बालकुमारी एवं वृद्धा,पुत्री, पौत्री एवं बहिन से भी जहां स्पर्श नहीं किया जाता, वह गच्छ
जत्थित्थीकरफरिस, लिंगी अरिहों वी सयमवि करिज्जा। तं निच्छयो गोयम ! जाणिज्जा मूलगुणे भट्ठम ||८|| कीरइ बीअपएणं, सुचममणि ननत्थ विहिए। उ । उप्पन्ने पुण कज्जे, दिक्खाायकमाईए ॥ ८६॥ ____ साधुवेष युक्त यदि कोई एक पूज्य आचार्य भी स्वयं स्त्री के हाथ का स्पर्श करे, तो हे गौतम ! निश्चय ही वह मूलगुणों से भ्रष्ट है । और जिस गच्छ में अपवाद रूप से भी स्त्री के हाथ आदि का स्पर्श नहीं किया जाता क्योंकि शास्त्र में अपवाद अवस्था में भी स्त्रीस्पर्श वर्जनीय है कारण कि चतुर्थ महाव्रत का अपवाद
बालाया वृद्धाया, नप्तृकाया दुहितुकाया अथवा भगिन्याः । न च क्रियते तनुस्पर्शः, गौतम ! गच्छः सको भणितः ।।८४॥ यत्र स्त्रीकरस्पर्श, लिङ्गी अर्होऽपि स्वयंमपि (स्वयमेव) कुर्यात् । तं निश्चयतो गौतम !, जानीयान् मूलगुणभ्रष्टम् ॥ ८५ ॥ क्रियते द्वितीयपदेन, सूत्राणितं न यत्र विधिना तु । उत्पन्ने पुनः कार्ये, दीक्षाऽऽतकादिके ॥८६॥
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