Book Title: Gacchayar Painnayam
Author(s): Trilokmuni
Publisher: Ramjidas Kishorchand Jain

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राचार्यस्वरूप निपरण देसंखितं त जाणित्ता, वत्थं प उवस्मयं । संग माहूरच, सुनत्थं च निहालई ॥ १४ ॥ गच्छ का आचार्य श्रागमों का चिन्तन मनन तथा उस के अनुसार आचरण करता हुआ साधुवर्ग का संग्रह करता है और देशकालानुसार उनके लिये वस्त्र पात्र तथा योग्य उपाश्रय ( वसति) आदि का ध्यान रखता है | जो आचार्य अपने शिष्यों की सार संभाल नहीं करता अव उस के विषय में कहते हैं संग विहिणा, न करेइ अ जो गणी | समति दिक्खित्चा, सामायारिं न पाए। १५।। चालाण जो उ सीसाणं, जीहाए उवलिपए । न सम्ममग्न गाहेइ, सो सूरी जाण वेरिओ ।। २६ । जो आचार्य साधुओं का विधिपूर्वक संग्रह और उनकी रक्षा नहीं करता है । साधु साध्वियों को दीक्षा तो दे देता है परन्तु उनको साधुओं के नियमोपनियमों का पालन नहीं करवाता देशं क्षेत्रं तु ज्ञात्वा वस्त्रं पात्र-पाश्रयम् । संग्रहीत साधुवर्ग च, सूत्रार्थं च निभालयति ॥ १४ ॥ विधिना न करोति च यो गणी । श्रम श्रमणी तु दाक्षित्वा, सामाचारिं न ग्राहयेत् ॥ २२ ॥ , बालानां यस्तु शिष्याणां जिह्वया उपलिम्पेत् । न सम्यगमार्ग प्राहयति, स सूरिर्जानीहि वैरी ॥ १६ ॥ For Private And Personal Use Only

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