Book Title: Dharmratna Prakaran Author(s): Manikyamuni Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani View full book textPage 7
________________ ( ५ ) है साधुओं के वचनं सुनकर और विश्वास करके परीक्षा की खातिर तीरक दंबक ने उनको कृत्रिम बकरा बना कर दिया और कोई न देखे वहां जाकर मारने को कहा, जो नारद दीर्घ दृष्टिवाला था उसने एकांत में जाकर उसे मारने का विचार किया, किंतु विचार करने लगा कि ज्ञानी, तारे बा देवता सबको सर्वत्र देखते हैं, मैं भी देखता हूं इससे तो गुरुका अभि माय बकरे को नहीं मारने का है, गुरु के पास जाकर उसने सब वात सुनाई गुरु ने विचारा कि यह सुगति में जावेगा राज पुत्र का तो नरक में जानेका संभव है किंतु मेरा पुत्र नरक में कैसे जावेगा ? ऐसां विचार कर अपने पुत्र को बुलाकर बैंसाही बकरा मारने को कहा वो विचारा कम अक्ल था, जाकर मार आया पिता ने पूछा, कैसे माराया ? क्या वहां देव नहीं देखतेथे अथवा तू नहीं देखता था ? तब बोला, मेरी ऐसी बुद्धि कहां से होवे, गुरु ने सोचा कि अज्ञानता से यह अर्थ का अनर्थ कर नर्क में जावेगा ऐसा ही वसु का मालूम हुआ, उपाध्याय को संसार से खेद हुआ दीक्षा लेकर सद्गति को प्राप्त हुआ. पर्वत पीछे उपाध्याय हुआ तो भी अर्थ का अनर्थ करने लगा, नारद जो पढ़कर चला गया था वो एक दिन पर्वत मित्र से मिलने को आया और जिस समय पर्वत ने छात्रों को पाठं दिया उस समय आजका अर्थ यज्ञ में पुराणी व्रीहि अनाज के बदले बकरे का अर्थ किया, तब नारद ने समझाया परंतु वो मंद बुद्धि था और अधिक गुस्से वाला भी था जिससे अपना अपमान समझ झगड़ा करने लगा, और दोनों ने निश्चय किया कि बसु राजा जो अपने साथ पढ़ता था और सत्यवादी होने से अधर बैठता है उसके वचन पर विश्वास करना, पर्वत की मा ने सुना तब उसको सच्चा अर्थ मालूम होने से पर्वत को उसने कहा कि ऐसी आपस में हठ क्यों करते हो ? मित्र भाव से जो मित्र मिलने आया है उससे झगड़ा नहीं करना चाहिये, पर्वत बोला, मेरा इसने अपमान किया है इसलिये मैंने इसके साथ प्रण किया है कि जो झूठा होवे उसकी जीभ काटी जाबे, मा सुनकर चमक गई एकांत में बेटे को बुलाकर कहा मंद भाग्य पुत्र ? इतना झूठा घमंड कर अपना क्योंPage Navigation
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