Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 5
________________ ( ३ ) झाने में तकलीफ न होवे इस लिये कुछ बुद्धि विकाश की भी आवश्यकता है नहीं तो अज्ञानता से नियम करने वाले एक जड़ बुद्धि की तरह धर्म के बदले अधर्म का भागी होगा। ___ एक जड़ बुद्धि ने नियम लिया कि बीमार साधु को औषध देकर पीछे रोटी खाऊंगा, किसी समय पर बीमार साधु न.पाया तो वो जड़ बुद्धि पश्चात्ताप करने लगा कि मैं कैसा निर्भागी हूं कि आज कोई साधु बीमार नहीं होता ! उस की आंतरिक अभिलाषा दुषित न थी तो भी अज्ञान दशा से साधुओंकी बीमारीकी उत्पत्ति की चिंतवना से उसकी अभिलाषा दषित हो गई पापका भागी हुश्राऔर जो उसे कुछ भी बुद्धि का विकाश होता तो ऐसा नियम न लेता और लेता तो ऐसी कुभावना मन में नहीं लाता, इस लिये गंभीरता उसही में है जो कुछ बुद्धि विकाश वाला भी हो। यहां पर छोय दृष्टांत कहता हूं। एक युवति छोटी उम्र में धनाढ्य के लड़के को दी गई थी परंतु जब यह कन्या सुसराल को गई तब उस धनाढय के धन नहीं रहने से दुःख. देखकर पीयर चली गई, बाप ने कुछ न कहा, थोड़े वर्ष बाद उसका पति बुलाने को आया तो वो युवति बाप की शर्म की खातिर सासरे चली परंतु रास्ते में पानी लाने के बहाने पति को कूवे में गिरा कर बाप के घर चली आई, तो भी बाप ने कुछ न कहा, न पूछा, थोड़े रोज बाद पति को फिर आया देख वो घबराने लगी परंतु पति ने इशारे से समझा दी कि मैंने किसी को तेरा कर्त्तव्य नहीं कहा है, तू संतोष से मेरे साथ चल, इस समय युवति की उम् बड़ी हो जाने से और लोगों की शर्म से वह पति के साथ चली गई। ___ पतिके साथ घर जाकर एक दिन पति से पूछने लगी कि आप कैसे बचे और मेरा इतना अपराध होने पर भी आप मुझे क्यों चाहते हो ? और मेरा विश्वास कैसे करते हो ? पतिने कहा धर्म के प्रभाव से मुझे किसी का भय नहीं है, वो सुनकर युवति उस दिन से पति पर सच्चा प्रेस धरने वाली होगई. लोगों में उसकी इज्जत बढ़ी, और दोनों के सच्चे प्रेम से घर में लक्ष्मी भी बढ़ने लगी लड़के भी हुए बड़े होने पर उनकी शादी होने से बहुरें भी आई और वे सब स्वर्ग का सुख भोगने लगे।

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