Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 4
________________ (२) . ८४ लाख जीव योनि में घूमते २ जीवों को महापुण्य से ही मनुष्य योनि प्राप्त होती है और मनुष्य जन्म में भी जन्म मरण का त्रास दूर करने वाला सुधर्म रत्न प्राप्त होना बहुत मुश्किल है। .. जैसे पुण्य रहित जीवों को चिंतामणी रत्न, कल्प वृक्ष, काम धेनु वगैरह प्राप्त होनी मुश्किल है ऐसे ही निष्पुण्य गुण रहित जीवों को धर्म रत्न की प्राप्ति भी दुर्लभ है, धर्म रत्न प्राप्त होने के पहिले इतने गुणों की आवश्यकता ज्ञानी भगवंतों ने बताई है सो कहता हूं यद्यपि मुक्ति के लिधे साधु का सर्व विरति धर्म श्रेष्ट है किंतु श्रावक प्रथम सद्गृहस्थका देश विरति धर्म को प्राप्त करके साधु धर्म अच्छी तरह पाल सक्ता है इस लिये प्रथम श्रावक के गुणों का वर्णन करता हूं कि उनको अच्छी तरह समझ कर देश विरति और सर्व विरति धर्मपाल सिद्ध पद पाकर जन्म मरण के बंधन से मुक्त होवे । श्रावक के २१ गुणों के नाम. (१) अक्षुद्र (२) रूपवान, ३ प्रकृति सौम्य, ४ लोक प्रिय, ५ अकर ६ पाप भीरु, ७अशठ ८ सुदाक्षिण्य, लज्जावान, १० दयालु, ११ मध्यस्थ सौ. म्य दृष्टि, १२ गुणरागी, १३ सत्कथक, १४ सुपक्ष युक्त, १५ सुदीर्घदर्शी, १६ बिशेषज्ञ १७ वृद्धानुग, १८. विनीत, १६ कृतज्ञ, २० परोपकारी २१ लब्ध लक्ष्य--इन २१ गुणों का वर्णन करता हूं अक्षुद्र (गंभीर, तुच्छता से रहित ) जो क्षुद्र होता है वो तुच्छता से बात बात में झगड़ा करता है, गुरु महाराज उसे कुछ हितके लिये कह तो वो विना समझ ही अयोग्य उत्तर देकर गुरु का निंदक होकर हित शिक्षा प्राप्त नहीं करेगा, बच्चोंको प्रथम बुद्धिका विशेष विकाश न होने के कारण उनको मा बाप वा गुरु की आज्ञानुसार ही बर्तन करना चाहिये. - ऐसेही धर्म रहित जीवों को प्रथम निस्पृ ही निर्लोभी ज्ञानी पुरुषों के बचन पर विश्वास रखकर धर्म रत्न प्राप्त करना चाहिये इस लिये प्रथम गंभीरता को धारण करने की आवश्यकता है और गुरु महाराज को सम

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