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धना० निमित्तनो, शिवा शब्द अनुसार ॥ तटनी तीरे ततक्षणे, चाल्यो धनकुमार ॥ ५॥ शबन ३६ 8 दीगे एक आवतो, नीर पूरेथी जाम ॥ धन्ने ग्रही शब निरखते, रत्नराशि लही ताम ॥६॥
रत्न ग्रह्यां शब काढिने, दीघो जंबूक नद । देखो नैमित शास्त्रनां, पाम्यो फल परतक॥
॥अनुक्रमे नवंध्यो तिहां, वंध्याचल नगराज ॥ नऊयनी आव्यो तुरत, साइप्लिकमां है। | शिरताज ॥ ७॥
॥ ढाल थी. ॥ (चित्रोमा राजा रे.-ए देशी.) उऊयनी निरखे रे, मनमांही परखे रे ॥ शुं दीसे डे रे, सरिखी स्वर्गपुरी समीरे ॥2 १॥ लंका पिण लाजी रे, ईण आगल नांजी रे॥ मनमें नही राजी रे, तव जलमें पमी रे ॥२॥ करी पूरी रे, सुन्नटे करी शरीरे॥कोई वाते न अधूर। रे, सुंदर शोन्नती रे॥ ३॥ चंप्रद्योत राजा रे, जश अधिक दिवाजा रे ॥ वसुधामे ताजा रे, यश ने जेहना रे ॥
॥ गज रथने घोमा रे, पायक दल जोमा रे ॥ नहि तेहने योमा रे, नृपने पायके रे ॥५॥ Kalशवादेवी राणी रे.सीता सम जागीरे॥पटराणी पाणी रे, नत्तम गुण थक। रे॥६ एक दिन नृप चिंते रे, मन केरी खंते रे ॥ बुध्विंत संकेते रे, मंत्रि न माहरे रे ॥७॥
१ पर्वत
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