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लव साहिने रे लो ॥ सा० किम जावो वो बौमि के मोहन माहरा रे लो, सा० श्रमे किम | बोडुं एम के पालव ताहरो रे लो || माहरा वालमा रे लो ॥ १ ॥ ए आंकी ॥ सा० तुम शुं अमचो नेह के पूरव प्रीतथी रे लो, सा० लाग्यो अविहरू नेह के जिम गेह जींतश्री रे लो ॥ सा० धोयो ते न धोवाय के प्रति घणा नीरश्री रे लो, सा० प्रीत बनी एक रंक के जिम जल खीरथी रे लो || मा० ॥ २ ॥ सा० शुं अम बोमा काज के परणी प्रेमश्री रे लो, सा० के मे श्रावी अत्र के अलवे एमथी रे लो ॥ सा० श्रमचा पिस माबाप के बे घरमा सुखी रे लो, सा० श्रमने सौंप्यां जेह के शुं करवा दुःखी रे लो || मा० ॥ ३ ॥ सा० तुम अम मस्तक मोम के श्रमे तुम वाणही रे लो, (सा० तुमची थाणा जेद के कदि लो पी नही रे लो) सा० सुपरे पालो स्नेह के निरवाही सदी रे लो ॥ सा० सापुरिसानी रीति के राखो जी रे लो, सा० अंगीकृत निरधार न मूके खीजथी रे लो ॥ मा० ॥ ४ ॥ सा० जुन इश्वर अर्धांग नमादेवी घरी रे लो, सा० कण एक मात्र विचाल न मूके ते परी रे लो ॥ सा० मस्तक में तिम गंग धरे बहु यत्नश्री रे लो, सा० अंगी कुतने काज न मूके प्र| यत्नश्री रे लो || मा० ॥ ५ ॥ यतः ॥ वसंततिलकावृत्तम् ॥ अद्यापि नोझतिहरः कलिकालकूटं. कूर्मो बिधिरणिं किल पृष्ठकेन || अँजोनिधिस्तदति दुस्सह वामवाग्निं, अंगीकृ
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