Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 255
________________ नया अवघr SAHISHASHRASEHORE ति रन्नसकृतानां कर्मणामाविपत्ते,नवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः ॥१॥ नावार्थः काम करनारा माणसने काम करतां, जो कदि सारं अश्रवा नरसुं जे थाय, तो तेनी परिण जातीपंक्ति परुषे यवधी अवधारवी जोडा.कारण के नतावलथी करेला कामोनो विपाकात ज्यां सूधी ते संबंधी विपत्ति रहे थे, त्यां सूधी हृदयने बाले ले अने एक शब्य सरखो साले । M.॥१॥प्रनाते सविसयण पोषी, तेमि वहअर चार रे॥पांच पांच कण शालि केरा. दिये करी मनोहार रे ॥ वी०॥७॥मागीए जव अमे तुमथी, देजो ए कण पंच रे॥ चाक र वहुने शीख सुपरे, दिये जोई संच रे ॥ वी०॥ए॥ चारे वहु कण लेश चाली, पहोती निज निज गम रे॥वमी चिंते एह कणथी, सीमशे शो काम रे ॥वी०॥१०॥ मागशे तव अन्य देशू, नांखी ये श्म जाणी रे ॥ बीजीए कण नक कीधा, स्वसुर हस्त प्रमा रे॥ वी० ॥११॥त्रीजी चिंते तातजीए, दीधा कारण कोय रे ॥ यतन करीने गुप्त । स्थानक, राख्या युगते सोय रे ॥वी॥१२॥ लघु वधु मनमें विमासे, वधारूं एह बीज शरे॥पीयरे जर कृष्यकरने, दोये करी घणी रीऊ रे॥ वी॥ १३ ॥ ए पांचे कण सुपरे ४ करीने, वावज्यो शुन्न गम रे ॥ कण हुवे तव सर्व लेई, राखज्यो कोश धाम रे ॥ वी०॥ १ खेती करनारने. Jain Education national For Personal and Private Use Only Melainelibrary.org

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