Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 256
________________ धन्ना० १२७ १४ ॥ जिम को मितिले कीधो, बोजनी थइ वृद्धि रे ॥ वली बीजे वरस आवे, खेत्र | खेमी समृद्धिरे ॥ वी० ॥ १५ ॥ बीज सघलो तिहां वाव्यो, थर बहुली शालि रे ॥ वरस | पांचल एम करतां, का यया असराल रे | वी० ॥ १६ ॥ जरी कोठा करी मुझ, लघु व धु मन रंग रे || पांच वरषे फिरी तेड्यो, कुटुंब सवि नवरंग रे || वी० ॥ १७ ॥ वमी वहु बोलावी वेगे, मागे का ते पंच रे ॥ तव तुरतमें प्राणी दीधा, करी नहीं खलखंच रे ॥ वी० ॥ १८ ॥ सुसरो कहे ए करा न माहरा, करो सपथ सुसंग रे ॥ तब कहे में नांखि दीघा, एह अवर प्रमंग रे ॥ वी० ॥ १५ ॥ वयण निसुली स्वसुर कोप्यो, कहे राखी रीश रे ॥ are area कारज, करे तुं निश दीश रे | वी० ॥ २० ॥ नझिता तस नाम देई, राखी गृहने द्वाररे ॥ हवे बीजी वधु बोलावी, मागे करा तिशिवार रे ॥ वी ॥ २१ ॥ ते क दे में नक्ष कीधा, सुणी कोप प्रकास रे । क्षिका तस नाम थापी, करी रांधण तास रे ॥ वी० ॥ २२ ॥ त्रीजी प्रते तेमी तिवारे, श्रावी प्रणमे पाय रे ॥ तेह का यतने करीने, दीप्रति चाह रे || वी० ॥ २३ ॥ स्वसुर पूढे कहो बहुजी, कण श्रवर के तेह रे ॥ ताम कहे वधु तेह निश्चय, इहां नही संदेह रे || वी० ॥ २४ ॥ रक्षिका तस नाम थापी, सोंया सयल जंकार रे ॥ लघु वहुपें लामग्री तव, मागे करा सुप्रकार रे || वी० ॥ २५ ॥ ह Jain Educatione national For Personal and Private Use Only न० ४ १२७ ainelibrary.org

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