Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 274
________________ धन्ना सौनाग्ये ॥ झदि वृश्रिी शालिन तिम, नाम लीय नय नागे रे ॥ में ॥ १५ ॥ शालिनन 8 १३६४/६धनो शषिराया, जेहना सुजश गवाया ।। नाम लियंतां पातिक नासे, निर्मल थाये काया हरे॥ में ॥१६॥ तपगढमें पंमित वैरागी, दीपविजय बुझ राया ॥ तेहना शिष्य संवेगी । * सुंदर, कवि दयाविजय सवाया रे ॥ में ॥१७ ॥ तस पद सेवक कृष्ण विजय वर, धर्मग्र की धरे माया ॥ तस आग्रहश्री रासनी रचना, कीधी गुरु सुपसाया रे ॥ में०॥१७॥ न तम एह चरित्रज जाणी, नाव अनोपम लाया ॥ सुविहितना गुण नगते सुगते, श्रोता अति सुख पाया रे ॥ में ॥१५॥ वृदोपरि ए ढाल पताका, रूप कही मनरंगे ॥ सूरतिमं ४ मण पास पसाये, सूरतमें सुख संगे रे ॥ में ॥२०॥ चार नल्हासे अधिक विलासे, दान * कल्पद्रुम गायो । बुध जिनविजय कहे विस्तरज्यो, शत शाखाये सुबायो रे ॥ में॥१॥ इति श्री धनशालिचरित्रेप्राकृतप्रबंधेदानकल्पद्रुमाख्येचतुर्थशाखारूपधन्नशालिसंयम __ ग्रहणवर्णनानिधोचतुर्थोल्हासः समाप्तम्. ॥ अस्मिन्नोल्हासे ढाल ।। श्ए॥ प्रथमोल्हासे ढाल १७, हीतियोल्हासे ढाल १७, तृतीयोल्हासे ढाल २२, चतुर्थोल्हासे ढाल श्ए ॥ सर्व ढालो नए ॥ है। १३६ Jain Education international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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