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* सर्वोत्कृष्ट गुणो हता.॥ ४ ॥ एह धन्ना शालिनश्तणा गुण, स्वल्प बुड़ियी गाया जी॥ रसना पावन निर्मल गुणथी, लान अनंता पाया जी॥ ह० ॥ १५ ॥ श्री जिनकीर्तिसूरीश्वर विरचित, संस्कृत चरित्र निहाली जी॥ए अधिकार रच्यो में सुंदर, निज गुरु वयण है। संजाली जी ॥ ह० ॥ १६ ॥ अधिको नगे रनस पणाश्री, कुटिलबुदि संकेते जी ॥ते हैं। मुज मिलाक्का होज्यो, कहुं निज प्रातम देते जी ॥ ह ॥१७॥ श्री तपगबपति तेज दिवाकर, श्री विजयक्षमासूरि राया जी ॥ तस पट्टांबर दिनमणि सांप्रति, श्री विजयदया ॐ सूरि पाया जी॥ ह० ॥ १० ॥ तेह तणो आदेश लहीने, रास रच्यो ए रूमो जी ॥ चोरा-30 दशी ढाले संपूरण, चार नल्हासशु जोड्यो जी ॥ ६ ॥ १५ ॥ संवत सत्तरशे नवाणुं, वरषे
श्रावण मासे जी ॥ शित दशमी गुरुवार अनोपम, सिक्ष्यिोग सुविलासे जी ॥ ह ॥२० ॥ दानतणां फल नत्तम जागी, देजो दान विलासे जो ॥ ढाल असावीशमी जिनविजये, 2 कही चोथे नल्हासे जी ॥ ह० ॥१॥
॥ दोहा. ॥ दान पंच जिन दाखियां, अन्नय सुपात्र नत्तंग ॥ अनुकंपा नचितादि। तिम, कीर्तिदान मन रंग ॥१॥ अन्नय सुपात्रे मोक्षफल, शेष त्रिएय सुख नोग ॥ लहिये द दानतणे गुणे, इप्सित सयल संयोग ॥२॥ यतः ॥ आर्यावृत्तम्. ॥ अन्नय सुपत्नंदाणं,
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