Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 260
________________ धन्नाथाये जी, मु०॥ तस हृदयमें हरख न माये जी॥सु०॥ विकसीत वदने श्म बोले जी, न०॥ १२ए।मु०॥ वोहरो दहीं एम अतोले जी ॥ सु०॥ ११॥ बे साधुना पम्घा पूस्या जी, मु०॥न 1 वि राख्या कां अधूरा जी ॥ सु०॥ वदोरीने स्थानक आवे जी, मु०॥ वीर वांदी अधिके ४ नावे जी ॥ सु॥१२॥ तिहां गमनागमन आलोवे जी, मु०॥ करजोमा वीरने पूरे जी ॥ सु० ॥ तुमे मात कही हती स्वामी जी, मु०॥ दधि दाता ए अन्य पामी जी ॥ सु॥ १३ ॥ तव वीर कहे तुम माता जी, मु०॥ पूरव नवनी सुविख्याता जी ॥ सु०॥ सवि पूरी 18 रव नव परकाशो जी, मु०॥शालि मुनिवरे जेह अन्याशो जी। सु०॥१४॥ सुणि शा लि तहति विचारे जी, मु०॥ निज पूरव नव चित्त धारे जी ॥ सु॥ जुन पूरव नवे हुं ६ * गोवाल जी, मु०॥णे नवे न गयो नूपाल जी ॥ सु०॥ १५ ॥ वस्त्र खंगन मिलतो सा | जो जी, मु०॥ (गत नवे) मुज अन्न न मिलतो ताजो जी॥ सु०॥श्रा जव रत्नकंबल लो। धां जी, मु०॥ स्त्रीये पग लूही नांखी दीघां जी ॥ सु०॥ १६ ॥ पायसान ते उल्लहो पायो । 8 जी, मु॥ पूरव नवे परिश्रमे आयो जी॥ सु०॥ इह नवे दिव्य नोजन कीयां जी, मु०७ मनवंडित दिन सवि सीधा जी ॥ सु॥ १७ ॥ गत नवे एक कवमी न पाई जी, मु०॥ ह नवे वलि लक्ष्मी आई जी॥सु०॥ एक साधुना दान प्रनावे जी, मु॥ए पाम्यो सुख व १५॥ Jain Education national For Personal and Private Use Only nelibrary.org

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