________________
तोले करी तुलता हो के, सुरपुरी हीण भई ॥ तव ते कारणधी हो के,ळंची स्वर्ग गई ॥॥ लंका पिण लाजी हो के, जलधीमें ऊंपन्नई। अलका तिम सलको हो के, अलगी नास गइ रेसुरलोक समाणी हो के, जे जगमें जाणी॥ परसिह गवाणी हो के, श्नुत्तम नर खाणील ॥ ॥ गढ कोट रंगा हो के, चिंगा कोशीशा ॥ कोग नवरंगा हो के, फलके आरीसा
तिहां नाल विराजे हो के, मेघपरे गाजे ॥ जस नाद अवाजे हो के, वैरी दल नाजे॥ १०॥पोल पिण अति पोढी हो के, दोढी अति दीपे ॥ चारार्गल सारी हो के, नारी अरि जीपे॥ चहुटांचोराशी हो के, विविध वाणिज्य तणां ॥ तिहां हाट वखारे हो के, कीरियाणां रेघणां ॥११॥ वसे वरण अढारे हो के, ते सघला सुखीया । निज पुण्य प्रबलथी हो के, दीसे नही दुःखीया ॥ अति नन्नत मंदिर हो के, सुंदर सुविशाला ॥ गोखे मन हरखे हो। के, रमण करे बाला ॥१२॥ प्रासाद सोहावे हो के, जैनने शैवतणां ॥ तिहां पूजा नाटक हो के, बत्रिशबघणां ।। कमहथ व्यवहारी हो के, धनथी धनद समा॥ दाने करी शरा हो के, सुरतरु सम नपमा ।। १३ ॥ गौनइ सुदर्शन हो के, श्री जिनदास जशा ॥ कोटी ध्वज कहीए दो के, जिनमत चित्त वशा॥ जिण नगरे सुपरे हो के, चौद चोमास किया
१ देवलोक सरखी. २ ज्यां उत्तम. नत्तम पुरुफो अयः... कांगराः मोटो पोत.
+
956
Jan Educator
Anational
For Personal and Private Use Only
Jainelibrary.org