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धन्ना०
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ढाल १४ मी. ॥ (देशी कमखानी.)
सबल दल प्रबल र रंग वेगे चल्यो, नृप सतानिक तो मान धरतो ॥ गुहिर नि शाल सुप्रमाण रातूर तिम, घन घंटा सघन आवाज करतो ॥ स० ॥ १ ॥ ए प्रकली ॥ गज घणा मत नत्मत टूटा चले, शोश सिंदूरथी करीय शोजा || अमर गुंजारवे पूर्ण रो शेजा, दंत मूसल करीय दूर्ग खोया || स० ॥ २ ॥ कब कंबोज केकाण काश्मिरना, पाणिपंधा खुरासाणि कहीए ॥ नृप सतानिक तथा सैन्यमें दीसता, ते सवे जातिना तुरिय लदीए ||स०॥ ३ ॥ घणण घंटावली वृषन कंठे वली, प्रति घणा तूर रथमांदे गाजे ॥ रथ घणा एहवा सज कस्या समर में, शस्त्र बत्रीशी अधिक राजे ॥ स० ॥ ४ ॥ शिर घरी टोप कोपे करी चालता, मालता समर में प्रति नांदे ॥ वीर रसथी चढ्या शीश बोगा ध स्वा, सुजट एहवा सदा सैन्यमांहे ॥ स० ॥ ५ ॥ नृप सतानिक तणो लदिय प्रदेश वर, ग्रहिय शिरपाव सामंत शूरा | युद्ध करवा जणी प्रावीया क्रमही, जालीए जलधि कल्लो ल पूरा || स० ॥ ६ ॥ ताम धनशेठनो सैन्य पिए सनमुखे, चालीयो देइ निशाल का || अश्व रथ वीर गज घनघटा घणघणे, जालीए राम चढ्यो लेख लंका ॥ स० ॥ ७ ॥ नाल गोला घणा शब्द बहु तेह तथा, सांगली शेष पिएा दोन पावे ॥ तीर तरवार जालातला
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