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| न थई रही ताम ॥ गुण ॥ तस कंठे हो राज ग्वे निज कंठथी, नृप पुत्री हार नद्दाम ॥गु० 18/॥०॥१५॥ करी क्रीमा हो राज आवी निज मंदिरे, तेह गीतकला गुणधाम ॥गु०॥५
निज तातने हो राज नमीने वीनवे जी, सुणो तातजी निज हित काम ॥ गुण ॥ न॥१६ ॥ स्वर नादे हो राज कुरंगी वश करी जी, कंग्थकी लावे हार ॥ गु० ॥ आ नवमें हो राज जे मिलशे एडवो, ते वरवो में जरतार ॥ गु०॥न ॥ १७ ॥ तेह वार्ता हो राज घई
सवि थानके जी, जिम जलमें तैल प्रचार ॥ गु०॥ ढाल सोलमी हो राज त्रीजा नल्हास हानी जी, कही जिनविजये सुविचार ॥ गु० ॥ न ॥ १७ ॥
॥दोहा. ॥ ते वार्ता धने तुरत, सांजली सेवक पास ॥ सुनग वेश पहेरी चल्यो, है राजसन्नाये खास ॥१॥ कहे धन्नो नूनाथ सुण, वनमें मृगनो मेल ॥ सुलन्न अ स्वरवं
तने, पिण एक सांनल खेल ॥२॥ वनमेंथी स्वरथी खरी, लावू नगर मकार ॥ ते मृगिने 18 कहे तो वली, प्राणुं सन्नामें सार ॥६॥ ताल कंसाल मृदंग ध्वनि, तेहश्री न लहे बीक ॥2
नय नवि पामे कोयथी, रहे मुज पास नजीक ॥४॥ सुणि नृपति हरखीत थई, दीधो तस आदेश ॥ तव धन्नो वीणा ग्रही, आव्यो ते वन देश ॥ ५ ॥ वाई वीणा वेगथी, स्वरथी गीत सुग्यान ॥ सप्त स्वर त्रिण ग्रामश्री, गणपचास ते तान ॥६॥राग आलापे षट रली,
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